________________ सत्तरहवां शतक : उद्देशक 4] / 627 समय, देश और प्रदेश की अपेक्षा से जीव और चौवीस दण्डकों में प्राणातिपातादि क्रियाप्ररूपणा 8. जं समयं णं भंते ! जीवाणं पाणातिवाएणं किरिया कज्जति सा भंते ! कि पुट्ठा कज्जइ, अपुट्ठा कज्जइ ? एवं तहेव जाव वत्तन्वं सिया / जाव वेमाणियाणं / [8 प्र.] भगवन् ! जिस समय जीव प्राणातिपातिकी क्रिया करते हैं, उस समय वे स्पृष्ट क्रिया करते हैं या अस्पृष्ट क्रिया करते हैं ? [8 उ.] गौतम ! पूर्वोक्त प्रकार से, यावत्-'अनानुपूर्वीकृत नहीं की जाती है', (यहाँ तक) कहना चाहिए / इसी प्रकार यावत् वैमानिकों तक जानना चाहिए ! 9, एवं जाव परिगहेणं / एते वि पंच दंडगा 10 / [6] इसी प्रकार यावत् पारिग्रहिकी क्रिया तक कहना चाहिए। ये पूर्ववत् पांच दण्डक होते हैं // 5 // 10. जं देसं णं भंते ! जीवाणं पाणातिवाएणं किरिया कज्जइ० ? एवं चेव / जाव परिगहेणं / एवं एते वि पंच दंडगा 15 / [10 प्र. भगवन् ! जिस देश (क्षेत्रविभाग) में जीव प्राणातिपातिकी क्रिया करते हैं, उस देश में वे स्पृष्ट क्रिया करते हैं या अस्पृष्ट ? [10 उ.] गौतम ! पूर्ववत् कहना चाहिए / यावत् पारिग्रहिकी क्रिया तक जानना चाहिए / इसी प्रकार ये (पूर्ववत्) पांच दण्डक होते हैं / / 15 / / 11. जं पदेसं णं भंते ! जीवाणं पाणातिवाएणं किरिया काजइ सा भंते ! कि पुट्ठा कज्जइ ? एवं तहेव दंडओ। [11 प्र.] भगवन् ! जिस प्रदेश में जीव प्राणातिपातिकी क्रिया करते हैं, उस प्रदेश में स्पृष्ट क्रिया करते हैं या अस्पृष्ट क्रिया करते हैं ? 12. एवं जाव परिग्गहेणं / एवं एए वीसं दंडगा। [11 उ.] गौतम ! पूर्ववत् दण्डक कहना चाहिए / [12] इस प्रकार यावत् पारिग्रहिकी क्रिया तक जानना चाहिए / यों ये सब मिला कर बीस दण्डक हुए। विवेचन---समय, देश और प्रदेश की अपेक्षा से प्राणातिपातादि क्रिया : व्याख्या-जिस समय में प्राणातिपात से क्रिया (पापकर्म) की जाती है. उस समय में, जिस देश अर्थात्-क्षेत्र विभाग में प्राणातिपात से क्रिया की जाती है, उस देश में, तथा जिस प्रदेश-अर्थात् लघुतम क्षेत्रविभाग में प्राणातिपात से क्रिया की जाती है, उस प्रदेश में, यह इन तीनों सूत्रों का प्राशय है। इसी को व्यक्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org