________________ 606] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [15 प्र.] भगवन् ! शरीर कितने कहे गए हैं ? . [15 उ.] गौतम ! शरीर पांच कहे हैं / यथा-प्रौदारिक यावत् कार्मण शरीर / 16. कति गंभंते ! इंदिया पन्नत्ता? गोयमा ! पंच इंदिया पन्नता, तं जहा-सोतिदिए जाव फासिदिए / [16 प्र.] भगवन् ! इन्द्रियाँ कितनी कही गई हैं ? [16 उ.] गौतम ! इन्द्रियाँ पांच कही गई हैं / यथा -श्रोत्रेन्द्रिय यावत् स्पर्शेन्द्रिय / 17. कतिविधे णं भंते ! जोए पन्नते ? गोयमा ! तिविधे जोए पन्नत्ते, तं जहा–मणजोए वइजोए कायजोए / [17 प्र.] भगवन् ! योग कितने प्रकार का कहा गया है ? [17 उ.] गौतम ! योग तीन प्रकार का कहा गया है। यथा-मनोयोग, वचनयोग और काययोग। 18. जीवे णं भंते ! पोरालियसरीरं निव्वत्तेमाणे कतिकिरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए। [18 प्र. भगवन् ! औदारिक शरीर को निष्पन्न करता (बांधता या बनाता) हया जीव कितनी क्रिया वाला होता है ? [18 उ.] गौतम ! (प्रौदारिक शरीर को बनाता हुअा जीव) कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार और कदाचित् पांच क्रिया वाला होता है / 19. एवं पुढविकाइए वि / 20. एवं जाव मणुस्से / [16-20] इसी प्रकार (औदारिकशरीर निष्पन्नकर्ता) पृथ्वी कायिक (जीव से लेकर) यावत् मनुष्य तक (को लगने वाली क्रियाओं के विषय में समझना चाहिए / ) 21. जीवा णं भंते ! ओरालियसरीरं निव्वत्तेमाणा कतिकिरिया ? गोयमा ! तिकिरिया वि, चउकिरिया बि, पंचकिरिया वि / [21 प्र. भगवन् ! औदारिक शरीर को निष्पन्न करते हुए अनेक जीव कितनी क्रियाओं वाले होते हैं ? [21 उ.] गौतम ! वे कदाचित् तीन, कदाचित् चार और पांच क्रियाओं वाले भी होते हैं। 22. एवं पुढविकाइया वि। 23. एवं जाव मणस्सा। [22-23] इसी प्रकार (दण्डकक्रम से) अनेक पृथ्वीकायिकों से लेकर यावत् अनेक मनुष्यों तक पूर्ववत् कथन करना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org