________________ 594] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गोयमा! कण्हलेस्सेहितो नीललेस्सा महिथिया जाव सध्यमहिलिया तेउलेस्सा / सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाब विहरति / / / सोलसमे सए : एगारसमो उद्देसओ समत्तो॥१६-११॥ [4 प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्या से लेकर यावत् तेजोलेश्या बाले द्वीपकुमारों में कौन किससे अल्पद्धिक हैं अथवा महद्धिक हैं ? [4 उ.] गौतम ! कृष्णलेश्या वाले द्वीपकुमारों से नीललेश्या वाले द्वीपकुमार महद्धिक हैं; (इस प्रकार उत्तरोत्तर महद्धिक हैं), यावत् तेजोलेश्या वाले द्वीपकुमार सभी से महद्धिक हैं / हे भगवन् ! कह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर (गौतम स्वामी) यावत् विचरते हैं। विवेचन–प्रस्तुत चार सूत्रों (सू. 1 से 4 तक) में भवनपति देव निकाय के अन्तर्गत द्वीपकुमार देवों के आहार, उच्छ्वास-निःश्वास, आयुष्य प्रादि की समानता-असमानता तथा उनमें पाई जाने वाली लेश्याएँ, तथा किस लेश्या वाला किससे अल्प, बहुत आदि एवं अल्पद्धिक-महद्धिक है ? इन तथ्यो का निरूपण किया गया है / // सोलहवां शतक : ग्यारहवाँ उद्देशक समाप्त / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org