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________________ 576] [আসক্তি है, ऐसा स्वयं को माने, ऐसा स्वप्न देख कर शीघ्र ही जागृत हो, तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, . यावत् सर्वदुःखों का अन्त करता है। 26. इत्यो वा पुरिसे वा सुविणंते एगं महं अपरासि वा तंबरासि वा तउयरासि वा सोसगरासि वा पासमाणे पासति, दुरूहमाणे दुरूहति, दुरूवनिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झइ, दोच्चे भवग्गणे सिज्झति जाव अंतं करेति / [26] कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में, एक बड़ी लोहराशि, तांबे को राशि, कथीर शि, अथवा शीशे की राशि देखने का प्रयत्न करता हझा देखे / उस पर चढ़ता हमा चढ़े तथा अपने आपको (उस पर) चढ़ा हुआ माने / ऐसा स्वप्न देख कर तत्काल जागृत हो, तो वह उसी भव में सिद्ध होता है. यावत् सर्वदुःखों का अन्त करता है। 27. इत्थी वा पुरिसे वा सुविणते एगं महं हिरणसि वा सुवण्णरासि वा रयणरासि वा वइररासि वा पासमाणे पासइ, दुरूहमाणे दुरूहइ, दुरूढमिति प्रप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झति, तेणेव भवग्गणेणं सिज्झति जाव अंतं करेति / [27] कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में एक महान् चांदी का ढेर, सोने का ढेर, रत्नों का ढेर अथवा वज़ों (हीरों) का ढेर देखता हुआ देखे, उस पर चढ़ता हुआ चढ़े, अपने पापको उस पर चढ़ा हुया माने, ऐसा स्वप्न देखकर तत्क्षण जागृत हो, तो वह उसो भव में सिद्ध होता है, यावत् सब दुखों का अन्त करता है / 28. इत्थी वा पुरिसे वा सुविणते एग महं तणरासि वा जहा तेयनिसग्गे (स० 15 सु० 82) जाव' अवकररासि वा पासमाणे पासति, विविखरमाणे विक्खिरइ, विविखण्णमिति अप्पाणं मन्नति, तक्खणामेव बुज्झति, तेणेव जाव अंतं करेति / [28] कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में, एक महान् तृणराशि (घास का ढेर) तथा तेजोनिसर्ग नामक पन्द्रहवें शतक के (सू. 82 के) अनुसार यावत् कचरे का ढेर देखता हुआ देखे, उसे बिखेरता हया बिखेर दे, और मैंने बिखेर दिया है, ऐसा स्वयं को माने, ऐसा स्वप्न देख कर तत्काल जागत हो तो वह उसो भव में सिद्ध होता है, यावत् सब दुःखों का अन्त करता है। 26. इत्यो वा पुरिसे वा सुविणते एगं महं सरथमं था वोरणथंभं वा वंसोमूलभ वा वल्लीमूलमं वा पासमाणे पासति, उम्मूलेमाणे उम्मूलेइ, उम्मूलितमिति अप्पाणं मन्नति तक्खणामेव बुज्झति, तेणेव जाव अंतं करेति / [26] कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में, एक महान् सर-स्तम्भ, वीरण-स्तम्भ, वंशीमूलस्तम्भ अथवा वल्लोमूल-स्तम्भ को देखता हुप्रा देखे, उसे उखाड़ता हुआ उखाड़ फेंके तथा ऐसा माने 1. जाव' पद सूचक पाठ-'पत्तरासीति तयारासीति भसरासीति तुसरासीति वा गोमयरासीति वा........ / ' ---अ. द. पत्र 713 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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