________________ सोलहवां शतक : उद्देशक 6] [567 सुप्त-जागृत-अवस्था में स्वप्नदर्शन का निरूपण 2. सुत्ते णं भंते ! सुविणं पासति, जागरे सुविणं पासति, सुत्तजागरे सुविणं पासति ? गोयमा ! नो सुत्ते सुविणं पासति, नो जागरे सुविणं पासति, सुत्तजागरे सुविणं पासति / [2 प्र.] भगवन् ! सोता हुग्रा प्राणी स्वप्न देखता है, जागता हुआ देखता है, अथवा सुप्तजागृत (सोता-जागता) प्राणी स्वप्न देखता है ? [2 उ.] गौतम ! सोता हुआ प्राणी स्वप्न नहीं देखता, और न जागता हुप्रा प्राणी स्वप्न देखता है, किन्तु सुप्त-जागत प्राणी स्वप्न देखता है / विवेचन-प्रस्तुत सूत्र (2) में स्वप्नदर्शन-सम्बन्धी प्रश्न द्रव्यनिद्रा (द्रव्यतः सुप्त) की अपेक्षा से किया गया है / इस दृष्टि से स्वप्न-दर्शन न तो द्रव्यनिद्रावस्था में होता है, और न द्रव्य जागृतावस्था में, किन्तु द्रव्यत: सुप्तजागत-अवस्था में होता है।' जीवों तथा चौवीस दण्डकों में सुप्त, जागृत एवं सुप्त-जागृत का निरूपण 3. जीवा णं भंते ! कि सुत्ता, जागरा, सुत्तजागरा? गोयमा ! जीवा सुत्ता वि, जागरा वि, सुत्तजागरा वि / [3 प्र.] भगवन् ! जीव सुप्त हैं, जागृत हैं अथवा सुप्त-जागृत हैं ? [3 उ.] गौतम ! जीव सुप्त भी हैं, जागृत भी हैं और सुप्तजागृत भी हैं / 4. नेरतिया णं भंते ! कि सुत्ता० पुच्छा। गोयमा! नेरइया सुत्ता, नो जागरा, नो सुत्तजागरा / [4 प्र.] भगवन् ! नैरयिक सुप्त हैं, इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [4 उ.] गौतम ! नैरयिक सुप्त है, जागृत नहीं है और न वे सुप्तजागृत हैं। 5. एवं जाव चरिदिया। [5 प्र.] इसी प्रकार (भवनपतिदेवों से लेकर) यावत् (एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और) चतुरिन्द्रिय तक कहना चाहिए। 6. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते ! कि सुत्ता० पुच्छा। गोयमा ! सुत्ता, नो जागरा, सुत्तजागरा वि / [6 प्र.] भगवन् ! पचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीव सुप्त हैं, या सुप्त-जागत हैं) इत्यादि [6 उ.] गौतम ! वे सुप्त हैं, जागृत नहीं हैं, सुप्त-जागृत भी हैं / 7. मणुस्सा जहा जीवा / [7] मनुष्यों के सम्बन्ध में सामान्य जीवों के समान (तीनों) जानना चाहिए। 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 711 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org