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________________ पन्द्रहवां शतक] [517 सुमंगल अनगार की भावी गति : सर्वार्थसिद्ध विमान एवं मोक्ष 133. सुमंगले णं भंते ! अणगारे विमलवाहणं रायं सहयं जाव भासरासि करेत्ता कहि गच्छिहिति कहि उववजिहिति ? गोयमा ! सुमंगले णं अणगारे विमलवाहणं रायं सहयं जाव भासरासि करेता बहूहि चउत्थछट्टट्ठम दसम-दुवालस जाब विचित्तेहि तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणेहिति, बहूई० पा० 2 मासियाए संलेहणाए ट्ठि भत्ताई अणसणाए जाव छेदेत्ता आलोइयपडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे० उड्ढे चंदिम जाव गेवेज्जविमाणावाससयं वीतीवइत्ता सम्वसिद्ध महाविमाणे देवत्ताए उबज्जिहिति / तत्थ णं देवाणं अजहन्नमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ठिती पन्नत्ता / तत्थ णं सुमंगलस्स वि देवस्स अजहन्नमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। [133 प्र.] भगवन् ! सुमंगल अनगार, अश्व, रथ और सारथि सहित (राजा विमल-वाहन को) भस्म का ढेर करके, स्वयं काल करके कहाँ जाएँगे, कहाँ उत्पन्न होंगे ? [133 उ.] गौतम ! विमलवाहन राजा को घोड़ा, रथ और सारथि महित भस्म करने के पश्चात् सुमंगल अनगार बहुत-से उपवास (चउत्थ), बेला (छट्ट), तेला (अट्ठम), चौला (दशम), पंचौला (द्वादश) यावत् विचित्र प्रकार के तपश्चरणों से अपनी प्रात्मा को भावित करते हुए बहुत वर्षों तक श्रामण्य-पर्याय का पालन करेंगे। फिर एक मास की संलेखना से साठ भक्त अनशन का यावत छेदन करेंगे और आलोचना एवं प्रतिक्रमण करके समाधिप्राप्त होकर काल के अवसर में काल करेंगे / फिर वे ऊपर चन्द्र, सूर्य, यावत् एक सौ ग्रेवेयक विमानावासों का अतिक्रमण करके सर्वार्थसिद्ध महाविमान में देवरूप से उत्पन्न होंगे। वहाँ देवों की अजघन्या नुत्कृष्ट (जघन्य और उत्कृष्टता से रहित) तेतीस सागरोपम की स्थिति कही गई है। वहाँ सुमंगल देव की भी अजघन्यानुत्कृष्ट (पूरे) तेतीस सागरोपम की स्थिति होगी। 134. से णं भंते ! सुमंगले देवे ताओ देवलोगानो जाव महाविदेहे वासे सिज्तिहिति जाव अंतं काहिति / [134 प्र०] भगवन् ! वह सुमंगलदेव उस देवलोक से च्यव कर कहां जाएगा, कहाँ उत्पन्न होगा ? [134 उ.] गौतम ! वह सुमंगलदेव उस देवलोक से च्यवकर यावत् महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होगा, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करेगा। विवेचन प्रस्तुत दो सूत्रों में सुमंगल अनगार की सर्वार्थसिद्ध देवभव में और तत्पश्चात् महाविदेह क्षेत्र में उत्पत्ति और मोक्षगति का निरूपण किया गया है। अजहन्नमणुक्कोसेणं-सर्वार्थसिद्ध विमानवासी देवों की जघन्य और उत्कृष्ट, यों दो प्रकार की स्थिति नहीं है किन्तु सभी देवों की तेतीस सागरोपम की स्थिति 1. भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. 5, पृ. 2488 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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