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________________ पन्द्रहवां शतक] [515 उस काल उस समय में विमल नामक तीर्थंकर के प्रपौत्र-शिष्य 'सुमंगल' नामक होंगे / उनका वर्णन (शतक 11. उ. 11. सु. 53 में उक्त) धर्मघोष अनगार के समान, यावत् संक्षिप्त-विपुल तेजोलेश्या वाले, तीन ज्ञानों से युक्त वह सुमंगल नामक अनगार, सुभूमिभाग उद्यान से न अति दुर और न अति निकट निरन्तर छठ-छठ (बेले-बेले) तप के साथ यावत् आतापना लेते हुए विचरेंगे / वह विमलवाहन राजा किसी दिन रथचर्या करने के लिए निकलेगा। जब सूभूमिभाग उद्यान से थोड़ी दूर रथचर्या करता हुमा वह विमलवाहत राजा, निरन्तर छठ-छठ तप के साथ प्रातापना लेते हुए मुमंगल अनगार को देखेगा; तब उन्हें देखते हो वह एकदम क्रुद्ध होकर यावत् मिसमिसायमान (क्रोध से अत्यन्त प्रज्वलित) होता हुआ रथ के अग्नभाग से सुमंगल अनगार को टक्कर मार कर नीचे गिरा देगा। विमलवाहन राजा द्वारा रथ के अग्रभाग से टक्कर मार कर सुमंगल अनगार को नीचे गिरा देने पर वह (सुमंगल अनगार) धीरे-धीरे उठेंगे और दूसरी बार फिर बाहें ऊँची करके यावत् आतापना लेते हुए विचरेंगे। तब वह विमलवाहन राजा फिर दूसरी बार रथ के अग्रभाग से टक्कर मार कर नीचे गिरा देगा, अतः सुमंगल अनगार फिर दूसरी बार शनैः शनैः उठेगे और अवधिज्ञान का उपयोग लगा कर विमलवाहन राजा के अतीत काल को देखेंगे / फिर वह बिमलवाहन राजा से इस प्रकार कहेंगे-'तुम वास्तव में विमलवाहन राजा नहीं हो, तुम देवसेन राजा भी नहीं हो, और न ही तुम महापद्म राजा हो; किन्तु तुम इससे पूर्व तीसरे भव में श्रमणों के घातक गोशाल नामक मंखलिपुत्र थे, यावत् तुम छद्मस्थ अवस्था में ही काल कर (मर) गए थे। उस समय समर्थ होते हुए भी सर्वानुभूति अनगार ने तुम्हारे अपराध को सम्यक् प्रकार से सहन कर लिया था, क्षमा कर दिया था, तितिक्षा की थी और उसे अध्यासित (समभावपूर्वक सहन) किया था। इसी प्रकार सुनक्षत्र अनगार ने भी समर्थ होते हुए यावत् अध्यासित किया था। उस समय श्रमण भगवान् महावीर ने भी समर्थ होते हुए भी यावत् अध्यासित (समभावपूर्वक सहन) कर लिया था। किन्तु मैं इस प्रकार सहन यावत् अध्यासित नहीं करूँगा / मैं तुम्हें अपने तप-तेज से घोड़े, रथ और सारथी सहित एक ही प्रहार में कूटाघात के समान राख का ढेर कर दूंगा। __ जब सुमंगल अनगार विमलवाहन राजा से ऐसा कहेंगे, तब वह एकदम कुपित यावत् क्रोध से आगबबूला हो उठेगा और फिर तीसरी बार भी रथ के सिरे से टक्कर मार कर सुमंगल अनगार को नीचे गिरा देगा। जब विमलवाहन राजा अपने रथ के सिरे से टक्कर मार कर, सुमंगल अनगार को तीसरी बार नीचे गिरा देगा, तब सुमंगल अनगार अतीव क्रुद्ध यावत् कोपावेश से मिसमिसाहट करते हुए आतापना भूमि से नीचे उतरेंगे और तेजस-समुद्घात करके सात-पाठ कदम पीछे हटेंगे, फिर विमलवाहन राजा को अपने तप-तेज से, घोड़े, रथ और सारथि सहित एक ही प्रहार से यावत् (जला कर) राख का ढेर कर देंगे। विवेचन-प्रस्तुत लम्बे सूत्र (सू. 132) में गोशालक के देवभव से लेकर मनुष्यभव में विमलवाहन राजा के रूप में, सुमंगल अनगार को तीन बार पीड़ा देने पर उनके द्वारा तपोजन्य तेजोलेश्या से भस्म कर देने तक का वृत्तान्त उल्लिखित किया गया है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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