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________________ 502] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र तपोजन्य तेजोलेश्या से पराभून होकर पित्तज्वर एवं दाह से पीड़ित होकर छह मास के अन्दर छद्मस्थ-अवस्था में ही मृत्यु प्राप्त करेंगे। विवेचन--प्रस्तुत पाँच सूत्रों (111 से 115) में भगवान महावीर के जीवन से सम्बन्धित पांच बातों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है (1) श्रमण भगवान् महावीर का श्रावस्ती से अन्य जनपदों में विहार / (2) में ढिकग्राम नगर, शालकोष्ठक, यावत् पृथ्वी शिलापट्टक एवं मालुकाकच्छ का परिचय / (3) मेंटिक ग्राम नगरवासी रेवती गाथापत्ती का परिचय / (4) भगवान् का में ढिकग्राम में पदार्पण, परिषद् द्वारा धर्मश्रवण / (5) इसी बीच भगवान के शरीर में पित्तज्वर का भयंकर प्रकोप हया, जिससे सारे शरीर में दाह एवं खून को दस्ते होने लगी। चतुर्वर्णोय-जनता में यह अफवाह फैल गई कि भगवान महावीर गोशालक द्वारा फैकी हुई तेजोलेश्या के प्रभाव से पित्तज्वराकान्त एवं दाहपीडित होकर छह मास के अन्दर में छद्मस्थ-अवस्था में ही मर जाएँगे।' कठिन शब्दों का अर्थ-मालयाकच्छए–एक गुठलो वाले वृक्षविशेषों का कच्छ --~गहन वन / विउले-विपुल, शरीरव्यापी / रोगायके-रोगातंक -पोड़ाकारो व्याधि / उज्जले--उज्ज्वलतीव / पाउन्भूए-प्रकट हुना। दुरहियासे-दुःसह / दाहवक्कंतिए-दाह को उत्पति से / लोहियबच्चाई-खून को दस्ते / चाउवण्णं-ब्राह्मणादि चार वर्ण, अथवा साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविकारूप चतुर्विधसंघ (चातुर्वर्ण्य श्रमणसंघ) अफवाह सुनकर सिंह अनगार को शोक, भगवान् द्वारा सन्देश पा कर सिंह अनगार का उनके पास आगमन 116. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवतो महावीरस्स अंतेवासी सोहे नामं अणगारे पगतिभद्दए जाव विणोए मालुयाकच्छगस्स अदूरसामंते छट्ठछट्टणं अनिखित्तेणं तवोकम्मेणं उबाहा० जाव विहरति / [116] उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के एक अन्तेवासी सिंह नामक अनगार थे, जो प्रकृति से भद्र यावत् विनीत थे। वे मालुकाकच्छ के निकट निरन्तर (लगातार) छठ-छठ (बेले-बेने) तपश्चरण के साथ अपनो दोनों भुजाएँ र उठा कर यावत् पातापना लेते थे। 117. तए णं तस्स सोहस्स अणगारस्स झागंतरिवाए वट्टमाणस्स अयमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था-एवं खल मम धम्मायरियस्स धम्मोवएसगस्स समणस्स भगवतो महावीरस्स सरीरगंसि विपुले रोगायंके पाउन्भूते उज्जले जाय छउमस्थे चेव कालं करिस्सति, वदिस्संति य णं अन्नतिथिया 1. बियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठटिप्पण) भा. 2 पृ. 727-728 2. (क) भगबती. अ. वृत्ति, पत्र 690 (ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. 5 पृ. 2463 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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