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________________ 484] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [81] तदनन्तर श्रावस्ती नगरी के शृगाटक यावत् राजमागों पर बहुत से लोग परस्पर एक दूसरे से कहने लगे, यावत् प्ररूपणा करने लगे--देवानुप्रियो ! श्रावस्ती नगरी के बाहर कोष्ठक चैत्य में दो जिन (तीर्थंकर) परस्पर संलाप कर रहे हैं। (उनमें से एक कहता है-'तू पहले काल कर जाएगा।' दूसरा उसे कहता है-'तू पहले मर जाएगा।' इन दोनों में कौन सम्यग्वादी (सत्यवादी) है, कौन मिथ्यावादी है ? उनमें से जो प्रधान (समझदार) मनुष्य था, उसने कहा—'श्रमण भगवान् महावीर सत्यवादी हैं, मखलिपुत्र गोशालक मिथ्यावादी है।' विवेचन—निष्कर्ष-'सत्यमेव जयते नानतम्' इस लोकोक्ति के अनुसार अन्त में सत्य की विजय हुई / भ. महावीर को गोशालक ने झूठा एवं दम्भी सिद्ध करना चाहा, मारने की धमकी देकर मारणप्रयोग भी किया किन्तु उसकी एक न चली / अन्त में भगवान् को लोगों ने सत्यवादी स्वीकार किया / अपहरणेअर्थ---यथाप्रधान मुख्य समझदार व्यक्ति / ' निर्ग्रन्थ श्रमणों को गोशालक के साथ धर्मचर्चा करते का भगवान का आदेश 82. 'अज्जो !' ति समणे भगवं महावीरे समणे निग्गथे आमंतेत्ता एवं क्यासि-अज्जो! से जहानामए तणरासी ति वा कट्टरासी ति वा पत्तरासी ति वा तयारासी ति वा तुसरासी ति वा भुसरासी ति वा गोमयरासी ति वा अवकररासी ति वा अगणिशामिए अगणिझुसिए अगणिपरिणामिए यतेये गयतेये नट्ठतेये भट्टतेये लुत्ततेए विणढतेये जाए एवामेव गोसाले मंखलिपुत्ते ममं वहाए सरीरगंसि तेयं निसिरेत्ता हयतेये गततेथे जाव विणतेये जाए, त छदेणं अज्जो! तुम्भे गोसालं मंलिपुत्तं धम्मियाए पडिचोयगाए पडिचोएह, धम्मियाए पडिचोयणाए पडिचोएत्ता धम्मियाए पडिसारणाए पडिसारेह, धम्मियाए पडिसारणाए पडिसारेत्ता धम्मिएणं पडोयारेणं पडोयारेह, धम्मिएणं पडोयारेणं पडोयारेता अजेंहि य हेतूहि य पसिहि य वागरणेहि य कारणेहि य निप्पपसिणवागरणं करेह / [82] तत्पश्चात् श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने श्रमण निर्ग्रन्थों को सम्बोधित कर इस प्रकार कहा--'हे पार्यो! जिस प्रकार तृणराशि, काष्ठराशि, पत्रराशि, त्वचा (छाल की) राशि, तुष राशि, भूसे की राशि, गोमय (गोबर) की राशि और अबकर राशि (कचरे के दर) को अग्नि में थोड़ा-सा जल जाने पर, आग में झोंक देने (या बहुत झुलस जाने) पर एवं अग्नि से परिणामान्तर होने पर उसका तेज हत हो (मारा) जाता है, उसका तेज चला जाता है, उसका तेज नष्ट और भ्रष्ट हो जाता है, उसका तेज लुप्त (अदृश्य) एवं विनष्ट हो जाता है; इसी प्रकार मंखलिपुत्र गोशालक द्वारा मेरे वध के लिए अपने शरीर से तेज (तेजोलेश्या) निकाल देने पर, अब उसका तेज हत हो (मारा) गया है, उसका तेज चला गया है, यावत् उसका तेज (नष्ट-भ्रष्ट) विनष्ट हो गया है / इसलिए, पार्यो ! अब तुम भले ही मंखलिपुत्र गोशालक को धर्मसम्बन्धी प्रतिनोदना (उसके मत के विरुद्ध वादविवाद) से प्रति प्रेरित करो, धर्मसम्बन्धी (उसके मत से विरुद्ध बात की) प्रतिस्मारणा (स्मृति) करा कर (विस्मृत अर्थ की) स्मृति कराओ। फिर धार्मिक प्रत्युपचार द्वारा उसका प्रत्युपचार 1. (क) वियाहपण्णत्तिसुत्त भा. 2, पृ. 719 (ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. 5, पृ. 2439 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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