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________________ 452] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र सेलसि वा कुड्डसि वा थंभंसि वा थूभंसि वा आवारिज्जमाणी वा निवारिज्जमाणो वा सा गं तत्थ णो कमति, नो पक्कमति, एवामेव गोसालस्स वि संखलिपुत्तस्स तबे तेये समणस्स भगवतो महावीरस्स वहाए सरीरगंसि निसिठे समाणे से णं तत्थ नो कमति, नो पक्कमति, अंचिअंचियं करेति, अंचि० क० 2 आदाहिणपयाहिणं करेत्ति, आ० क० 2 उड्ढं वेहासं उप्पतिए / से णं तो पडिहए पडिनियत्तमाणे तमेव गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सरीरगं प्रणुडहमाणे अणुडहमाणे अंतो अंतो अणुप्पविठे। [78] श्रमण भगवान महावीर स्वामी द्वारा इस प्रकार कहने पर मंखलिपुत्र गोशालक पुनः एकदम क्रुद्ध हो उठा। उसने क्रोधावेश में तैजस समुद्धात किया। फिर वह सात-पाठ कदम पीछे हटा और श्रमण भगवान महावीर का वध करने के लिए उसने अपने शरीर में से तेजोनिसर्ग किया (तेजोलेश्या निकाली)। जिस प्रकार बातोत्कलिका (ठहर-ठहर कर चलने वाली वायु) वातमण्डलिका (मण्डलाकार होकर चलने वाली हवा) पर्वत, भीत, स्तम्भ या स्तूप से आवारित (स्खलित) एवं निवारित (अवरुद्ध या निवृत्त) होती (हटती) हुई उन शैल आदि पर अपना थोड़ा-सा भी प्रभाव नहीं दिखाती, न ही विशेष प्रभाव दिखाती है। इसी प्रकार श्रमण भगवान् महावीर का वध करने के लिए मखलिपुत्र गोशालक द्वारा अपने शरीर में से बाहर निकाली (छोड़ी) हुई तपोजन्य तेजोलेश्या, भगवान् महावीर पर अपना थोड़ा या बहुत कुछ भी प्रभाव न दिखा सकी। (सिर्फ) उसने गमनागमन (ही) किया / फिर उसने दाहिनी ओर से प्रदक्षिणा की और ऊपर आकाश में उछल गई। फिर वह वहाँ से नीचे गिरी और वापिस लौट कर उसी मंखलिपुत्र गोशालक के शरीर को बार-बार जलाती हुई अन्त में उसी के शरीर के भीतर प्रविष्ट हो गई। विवेचन प्रस्तुत दो सूत्रों (77-78) में से प्रथम सूत्र में भगवान द्वारा गोशालक द्वारा प्राचरित अनार्य कर्म पर उसे दिए गए उपदेश का वर्णन है। द्वितीय सूत्र में बताया गया है कि गोशालक द्वारा भगवान् को मारने के लिए छोड़ी गई तेजोलेश्या उन्हें किञ्चित् क्षति न पहँचा कर प्राकाश में उछली और फिर नीचे प्राकर, लौट कर गोशालक के शरीर में प्रविष्ट हई और उसे बार-बार जलाने लगी / अर्थात्-पाक्रमणकर्ता गोशालक भगवान् को जलाने के बदले' स्वयं जल गया। कठिनशब्दार्थ-निसिट समाणे-निकलती हुई। णो कमइ, णो पक्कमइ:-थोड़ा या बहुत कुछ भी प्रभाव न दिखा सकी, थोड़ी या बहत क्षति पहँचाने में समर्थ न हई। अंचिअंचियं करेति गमनागमन किया / उप्पतिए-ऊपर उछली / पडिहए-गिरी / अण्डहमाणे-बार-बार जलाती हुई। क्रुद्ध गोशालक को भगवान के प्रति मरण घोषणा, भगवान द्वारा प्रतिवादपूर्वक गोशालक के अन्धकारमय भविष्य का कथन 79. तए णं से गोसाले मखलिपुत्ते सएणं तेयेणं अन्नाइट्ठे समाणे समणं भगवं महावीरं एवं 1. वियाहपण्णत्तिसुत (मू. पा. टि.) भा. 2, पृ. 717-618 2. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 683 (ख) भगवतो. (प्रमेयचन्द्रिका टीका) भा. 11, पृ. 664 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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