________________ पन्द्रहवां शतक] [453 वेसियायणं बालतर्वास्स एवं क्यासि-कि भवं मुणो मुणिए ? उदाहु जयासेज्जायरए? तए णं से वेसियायणे बालतवस्सी गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स एयम णो आढाति नो परिजाणति, तुसिणीए संचिति / तए णं से गोसाले मंखलिपत्ते वेसियायणं बालतस्सि दोच्चं पितच्च पि एवं बयासीकिं भवं मुणो मुणिए जाव सेज्जायरए ? तए णं से वेसियायणे बालतवस्सी गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं बुत्ते समाणे आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे प्रायावणभूमीओ पच्चोरुभति, पायावण 50 2 तेयासमुग्घाएणं समोहन्नति, ते० स० 2 सत्तटुपयाई पच्चोसक्कति, स०५०२ गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स बहाए सरीरगंसि तेयं निसिरति / [50] तभी मंखलिपुत्र गोशालक ने वैश्यायन वालतपस्वी को (ज्यों ही) देखा. (त्यों ही) मेरे पास से धीरे-धीरे खिसक कर वैश्यायन बालतपस्वी के निकट पाया और उसे गोशालक ने इस प्रकार कहा—'क्या आप तत्वज्ञ या तपस्वी मुनि हैं या जूओं के शय्यातर (स्थानदाता) हैं ?" वैश्यायन बालतपस्वी ने मंखलिपुत्र गोशालक के इस कथन को आदर नहीं दिया और न ही इसे स्वीकार किया, किन्तु वह मौन रहा। इस पर मंखलिपुत्र गोशालक ने दूसरी और तीसरी बार वैश्यायन बालतपस्वी को फिर इसी प्रकार पूछा-पाप तत्त्वज्ञ या तपस्वी मुनि हैं या जूत्रों के शय्यातर हैं? गोशालक ने जब दूसरी और तीसरी बार वैश्यायन बालतपस्वी को इस प्रकार कहा (छेड़ा) तो वह शीघ्र कुपित हो (क्रोध से भड़क) उठा यावत् क्रोध से दाँत पोसता हा प्रातापनाभूमि से नीचे उत्तरा। फिर तैजस-समुद्घात करके वह सात-पाठ कदम पीछे हटा / इस प्रकार मलिपुत्र गोशालक के वध (भस्म करने) के लिए उसने अपने शरीर से (उष्ण ) तेजोलेश्या बाहर निकाली। 51. तए णं अहं गोयमा ! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अणुकंपणटुयाए वेसियायणस्स बालतवस्सिस्स तेयपडिसाहरणट्ठयाए एस्थ णं अंतरा सोयलियं तेयलेस्सं निसिरामि, जाए सा ममं सोयलियाए तेयलेस्साए वेसियायणस्स बालतस्सिस्स उसिणा तेयलेस्सा पडिहया / 51] तदनन्तर, हे गौतम ! मैंने मंखलिपुत्र गोशालक पर अनुकम्पा करने के लिए, वैश्यायन बालतपस्वी की तेजोलेश्या का प्रतिसंहरण करने के लिए शीतल तेजोलेश्या बाहर निकाली। जिससे मेरी शीतल तेजोलेश्या से वैश्यायन बालतपस्वी की उष्ण तेजोलेश्या का प्रतिघात हो गया / 52. तए णं से वेसियायणे बालतवस्सी ममं सोयलियाए तेयलेस्साए साउसिणं तेयलेस्सं पडिहयं जाणित्ता गोसालस्स य मंखलिपुत्तस्स सरीरगस्स किंचि प्राबाहं वा वाबाहं वा छविच्छेदं वा अकीरमाणं पासित्ता माअं उसिणं तेयलेस्सं पडिसाहरति, साउसिणं तेयलेस्सं पडिसाहरित्ता ममं एवं वयासी से गतमेयं भगवं! , गतमेयं भगवं! / [52] तत्पश्चात् मेरी शीतल तेजोलेश्या से अपनी उष्ण तेजोलेश्या का प्रतिघात हुआ तथा गोशालक के शरीर को थोड़ी या अधिक पीड़ा या अवयवक्षति नहीं हुई जान कर वैश्यायन बालतपस्वी ने अपनी उष्ण तेजीलेश्या वापस खींच (समेट) ली। उसने मुझ से फिर इस प्रकार कहा'भगवन् ! मैंने जान लिया, भगवन् ! मैं समझ गया।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org