________________ पन्द्रहवां शतक] [447 33. तए णं अहं गोतमा ! तच्चमासक्खमणपारणगंसि तंतुवायसालाओ पडिनिक्खमामि, तं० प० 2 तहेव जाव अडमाणे सुणंदस्स गाहावतिस्स गिहं अणुपविठ्ठ। [33] तदनन्तर, हे गौतम ! तीसरे मासक्षमण के पारणे के लिये मैंने तन्तुबायशाला से बाहर निकल कर यावत् सुनन्द गाथापति के घर में प्रवेश किया / 34. तए णं से सुणंदे गाहावती०, एवं जहेव विजए गाहावती, नवरं ममं सव्वकामगुणिएणं भोयणेणं पडिलाभेति / सेसं तं चेव जाव चउत्थं मासक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहामि / [34] तब सुनन्द गाथापति ने ज्यों ही मुझे पाते हुए देखा, इत्यादि सारा वर्णन विजय गाथापति के समान (कहना चाहिए / ) विशेषता यह है कि उसने (सुनन्द ने मुझे सर्वकामगुणित (सर्वरसों से युक्त) भोजन से प्रतिलाभित किया / (यहाँ से लेकर) शेष सर्ववृत्तान्त, यावत् मैं चतुर्थ मासक्षमण स्वीकार कर के विचरण करने लगा; (यहाँ तक) पूर्ववत् (कहना चाहिए।) 35. तोसे णं नालंदाए बाहिरियाए अदूरसामते एत्थ णं कोल्लाए नामं सन्निवेसे होत्था। सन्निवेसवण्णयो। |35| उस नालन्दा के बाहरी भाग से कुछ दूर 'कोल्लाक' नामक सन्निवेश था। सन्निवेश का वर्णन (पूर्ववत् जान लेना चाहिए / ) 36. तत्थ णं कोल्लाए सन्निवेसे बहुले नाम माहणे परिवसइ अड्ढे जाव अपरिभूए रिउब्वेद जाव सुपरिनिहिए यावि होत्था / [36] उस कोल्लाक सन्निवेश में बहुल नामक ब्राह्मण (माहन) रहता था। वह अाढ्य यावत् अपरिभूत था और ऋग्वेद (आदि वैदिक धर्मशास्त्रों) में यावत् निपुण था / 37. तए णं से बहुले माहणे कत्तियचातुम्मासियपाडिवर्गसि विउलेणं महु-घयसंजुत्तेणं परमन्नेणं माहणे आयामेत्था। [37] उस बहुल ब्राह्मण ने कार्तिकी चौमासी की प्रतिपदा के दिन प्रचुर मधु और धत से संयुक्त परमान्न (खीर) का भोजन ब्राह्मणों को कराया एवं प्राचामित (कुल्ले आदि के द्वारा मुख शुद्ध) कराया। 38. तए णं अहं गोयमा ! चउत्थमासक्खमणपारणगंसि तंतुवायसालाओ पडिनिक्खमामि, तं०५०२ णालंदं बाहिरियं मझमज्झेणं निग्गच्छामि, नि० 2 जेणेव कोल्लाए सन्निवेसे तेणेव उवागच्छामि, ते० उ० 2 कोल्लाए सन्निवेसे उच्च-नीय जाव अडमाणे बहुलस्स माहणस्स गिहं अणुप्पविट्ट। [38] तभी मैं चतुर्थ मासक्षमण के पारणे के लिए तन्तुवायशाला से निकला और नालन्दा के बाहरी भाग के मध्य में से होकर कोल्लाक सन्निवेश पाया। वहाँ उच्च, नीच, मध्यम कुलों में भिक्षार्थ पर्यटन करता हुअा मैं बहुल ब्राह्मण के घर में प्रविष्ट हुप्रा / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org