________________ अट्ठमो उद्देसओ : बाले अष्टम उद्देशक : बाल एकान्त बाल, पण्डित प्रादि के आयुष्यबन्ध का विचार--- 1. एगंतवाले गं भंते ! मणस्से कि नेरइयाउयं पकरेति ? तिरिक्खाउयं पकरेति ? मणस्साउय पकरेति? देवाउयं पकरेति ? नेरइयाउय किच्चा नेरइएसु उववज्जति ? तिरियाउयं किच्चा तिरिएसु उववज्जई ? मणस्साउयं किच्चा मगुस्सेसु उववज्जइ ? देवाउयं किच्चा देवलोगेसु उववज्जति ? गोयमा ! एगंतबाले णं मणुस्से नेरइयाउयपि पकरेइ, तिरियाउय पि पकरेइ, मणुयाउयं पिपकरेइ, देवाउयपि पकरेह; रइयाउयपि किच्चा नेरइएसु उबवज्जति, तिरियाउयपि किच्चा तिरिएसु उववज्जति, मणस्साउयपि किच्चा मणुस्सेसु उववज्जति देवाउय पि किच्चा देवेसु उववज्जति / राजगृह नगर में समवसरण हुना और यावत्--श्री गौतम स्वामी इस प्रकार बोले [1 प्र.] भगवन् ! क्या एकान्त-वाल (मिथ्यादृष्टि) मनुष्य, नारक की आयु बांधता है तिर्यञ्च की आयु बांधता है, मनुष्य की आयु बांधता है अथवा देव की प्रायु बांधता है ? तथा क्या वह नरक की आयु बांधकर नैरयिकों में उत्पन्न होता है ; तिर्यञ्च की आयु बांधकर तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है। मनुष्य की आयु बांधकर मनुष्यों में उत्पन्न होता है अथवा देव की प्रायु बांध कर देवलोक में उत्पन्न होता है ? [1 उ.] गौतम ! एकान्त बाल मनुष्य नारक की भी श्रायु बाधता है, तिर्यञ्च की भी आयु बांधता है, मनुष्य की भी प्रायु बांधता है और देव की भी प्रायु बांधता है; तथा नरकायु बांध कर नैरयिकों में उत्पन्न होता है, तिर्यञ्चायु बांधकर तिर्यञ्चों में उत्पन्न होता है, मनुष्यायु बांध कर मनुष्यों में उत्पन्न होता है और देवायु बांधकर देवों में उत्पन्न होता है / 2. एगंतपंडिए णं भंते ! मणुस्से कि नेरइयाउय पकरेइ ? जाव देवाउय किच्चा देवलोएसु उववज्जति? गोयमा! एगंतपंडिए थे मगुस्से प्राउयं सिय पकरेति, सिय नो पकरेति / जइ पकरेइ नो नेरइयाउय पकरेइ, नो तिरियाउयपकरेइ, नो मणुस्साउयपकरेइ, देवाउयंपकरेति / नो नेर इयाउय किच्चा नेरइएसु उबवज्जइ, णो तिरि०, जो मणुस्सा०, देवाउय किच्चा देवेसु उववज्जति / से केण?णं जाव देवाउय किच्चा देवेसु उववज्जति ? गोयमा! एगंतपंडितस्स णं मणुस्सस्स केवलमेव दो गतीओ पन्नाय ति, तं जहा-अंतकिरिया चेव, कप्पोववत्तिया चेव / से तेणणं गोतमा! जाव देवाउय किच्चा देवेसु उवज्जति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org