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________________ 434 (व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र * इसके पश्चात् भी जब गोशालक ने भगवान को छह मास के अन्त में पित्तज्वर से दाहपीड़ावश छदमस्थावस्था में ही मरने की धमकी दी तो भगवान ने जनता में मिथ्या प्रचार की सम्भावना को लेकर प्रतिवाद किया और कहा--गोशालक सात रात्रि में ही पित्तज्वर से पीड़ित होकर छद्मस्थ अवस्था में ही मृत्यु को प्राप्त होगा तथा स्वयं के 16 वर्ष तक जीवित रहने की भविष्यवाणी की / भगवान के साधूनों ने गोशालक को तेजोहीन समझ धर्मचर्चा में पराजित किया / फलत: बहुत से आजीविक-स्थविर गोशालक का साथ छोड़ भगवान् की शरण में आगए। गोशालक ने भगवान् को तेजोलेश्या के प्रहार से मारना चाहा था, किन्तु वह उसी के लिए घातक बन गई। वह उन्मत्त की तरह प्रलाप, मद्यपान, नाच-गान आदि करने लगा / अपने दोषों के ढंकने के लिए बह चरमपान, चरमगान प्रादि 8 चरमों की मनगढन्त प्ररूपणा करने लगा। अयं पुल नामक प्राजीविकोपासक गोशालक की उन्मत्त चेष्टाएँ देख विमुख होने वाला था, उसे स्थविरों ने ऊटपटांग समझाकर पूनः गोशाल कमत में किया / * गोशालक ने अपना अन्तिम समय निकट जान कर अपने स्थविरों को निकट बुलाकर धूमधाम से शवयात्रा निकालने तथा मरणोत्तर क्रिया करने का निर्देश शपथ दिलाकर किया। किन्तु जब सातवीं रात्रि व्यतीत हो रही थी तभी गोशालक को सम्यक्त्व उपलब्ध हुअा और उसने स्वयं अात्मनिन्दापूर्वक अपने कुकृत्यों तथा उत्सूत्र-प्ररूपणा का रहस्योद्घाटन किया और मरण के अनन्तर अपने शव की विडम्बना करने का निर्देश दिया / स्थविरों ने उसके आदेश का औपचारिक पालन ही किया। इसके पश्चात् भगवान् के शरीर में पित्तज्वर का प्रकोप, लोकापवाद सुन सिंह अनगार को शोक, भगवान् द्वारा मन समाधान, रेवती के यहाँ से औषध लाने का आदेश तथा औषध-सेवन से रोगोपशमन, भगवान् के प्रारोग्यलाभ से चतुर्विध संघ, देव-देवी-दानव-मानवादि सबको प्रसन्नता हुई। * शतक के उपसंहार मे गौतमस्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने गोशालक के भावी जन्मों को झांकी बतलाकर सभी योनियों और गतियों में अनेक बार भ्रमण करने के पश्चात क्रमशः आराधक होकर महाविदेह क्षेत्र में दृढप्रतिज्ञ केवली होकर अन्त में सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होने का उज्ज्वल भविष्य कथन किया है। * प्रस्तुत शतक से भाजी विक सम्प्रदाय के सिद्धान्त और इतिहास का पर्याप्त परिचय मिलता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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