________________ चौदहवां शतक : उद्देशक 6] चौवीस दण्डकों में वीचिद्रध्य-प्रवीचिद्रव्याहार-प्ररूपणा 4. [1] नेरइया णं भंते ! कि वोचिदम्वाई आहारैति, अवोचिदव्वाइं आहारेंति ? गोयमा! नेरतिया वीचिदब्वाई पि आहारेति, प्रवीचिदन्वाई पि आहारेति / [4-1 प्र.] भगवन् ! नैरयिक जीव वीचिद्रव्यों का आहार करते हैं अथवा अवीचिद्रव्यों का? {4-1 उ.] गौतम ! नैरयिक जीव वीचिद्रव्यों का भी प्राहार करते हैं और अवीचिद्रव्यों का भी प्राहार करते हैं / [2] से केणटुणं भंते ! एवं वुच्चति 'नेरतिया वीचि० तं चेव जाव आहारति' ? गोयमा ! जे णे नेरइया एगपदेसूणाई पि दवाई आहारेति ते गं नेरतिया वीचिदव्वाई आहारति जे गं पडिपुष्णाई दवाई आहारैति ते गं नेरइया नेरतिया अवीचिदन्चाई आहारैति / से तेणटणं ! गोयमा ! एवं बुच्चति जाव आहारेति / {4-2 प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता कि नरयिक..... यावत् अवीचिद्रव्यों का भी आहार करते हैं ? {4-2 उ.] गौतम ! जो नैरयिक एक प्रदेश न्यून (कम) द्रव्यों का प्राहार करते हैं, वे वीचिद्रव्यों का आहार करते हैं और जो परिपूर्ण द्रव्यों का आहार करते हैं, वे नैरयिक अवीचिद्रव्यों का आहार करते हैं। इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि नैयिक जीव वीचिद्रव्यों का भी आहार करते हैं और अवीचिद्रव्यों का भी। 5. एवं जाव वेमाणिया। [5] इसी प्रकार यावत् वैमानिक तक कहना चाहिए। विवेचन-वीचिद्रव्य और प्रवीचिद्रव्य की परिभाषा--जितने पुद्गलों (द्रव्यसमूह) से सम्पूर्ण पाहार होता है, उसे अधीचिद्रव्य आहार कहते हैं और सम्पूर्ण आहार से एक प्रदेश भी कम प्रहार होता है, उसे वीचिद्रव्य का आहार कहते हैं।' शकेन्द्र से अच्यतेन्द्र तक देवेन्द्रों के दिव्य भोगों की उपभोगपद्धति 6 जाहे णं भंते ! सबके देविदे देवराया दिवाई भोगभोगाई भुजिउकामे भवति से कहमिदाणि पकरोति ? गोयमा ! ताहे चेव णं से सक्के देविदे देवराया एणं महं नेमिपडिरूवर्ग विउव्यक्ति, एगं 1, वीचिः-विवक्षितद्रव्याणां तदवयकानां च परस्परेण पृथक्भावः, (विचिर् पृथकभावे' इति वचनात्) / तत्र वीचिप्रधानानि द्रव्याणि वीचिद्रव्याणि एकादिप्रदेशन्यूनानीत्यर्थ: / एतन्निषेधाद् अवीचिद्रव्याणि। -भगवती. अ. बत्ति, पत्र 644 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org