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________________ 124 ] [ ध्याख्याप्रज्ञप्तिसूत जीवों की विग्रहगति-अविग्रहगतिसम्बन्धी प्रश्नोत्तर-- 7. [1] जीव णं भंते ! कि विगहगतिसमावन्नए ? अविग्गहगतिसमावन्नए ? गोयमा ! सिय विगहगतिसमावन्नए, सिय अविम्गहमतिसमावनगे। [2] एवं जाव' वेमाहिए। [7-1 प्र.] भगवन् ! क्या जीव विग्रगतिसमापन्न-विग्रहगति को प्राप्त होता है, अथवा विग्रहगतिसमापन्न-विग्रहगति को प्राप्त नहीं होता ? [7-1 उ.] गौतम ! कभी (वह) विग्रहगति को प्राप्त होता है, और कभी विग्रहगति को प्राप्त नहीं होता। [7-2] इसी प्रकार वैमानिकपर्यन्त जानना चाहिए / 8. [1] जीवा णं भंते ! कि विग्गहगतिसमावन्नगा ? अविग्गहगतिसमावनगा ? गोयमा ! विग्गगतिसमावनगा वि, प्रविग्गहगतिसमावन्नगा वि / [2] नेरइया णं भंते ! कि विग्गहमतिसमावनगा ? अविग्गहगतिसमावन्नगा? गोयमा ! सव्वे वि ताव होज्जा अधिग्गहतिसमावन्नगा 1, प्रहवा प्रविग्गहतिसमावनगा य विगहगतिसमावनगे य 2, प्रहवा प्रविगहातिसमावन्नगा य विग्गहमतिसमावन्नगा य 3, एवं जीव-एगिदियवज्जो तियभंगो। [8-1 प्र. भगवन् ! क्या बहुत से जीव विग्रहगति को प्राप्त होते हैं अथवा विग्रहगति को प्राप्त नहीं होते ? [8-1 उ. गौतम ! बहुत से जीव विग्रहगति को प्राप्त होते हैं और बहुत से जीव विग्रहगति को प्राप्त नहीं भी होते / [8-2 प्र.] भगवन् ! क्या नैरयिक विग्रहगति को प्राप्त होते हैं या विग्रहगति को प्राप्त नहीं होते ? [8-2 उ.] गौतम ! (1) (कभी) वे सभी विग्रहगति को प्राप्त नहीं होते, अथवा (2) (कभी) बहुत से विग्रहगति को प्राप्त नहीं होते और कोई-कोई विग्रहगति को प्राप्त नहीं होता, अथवा (3) (कभी) बहुत से जीव विग्रहगति को प्राप्त नहीं होते और बहुत से (जीव) विग्रहगति को प्राप्त होते हैं। यों जीव सामान्य और एकेन्द्रिय को छोड़कर सर्वत्र इसी प्रकार तीन-तीन भंग कहने चाहिए। विवेचन-जीवों को विग्रहगति-प्रविग्रहाति-सम्बन्धित प्रश्नोतर-प्रस्तुत दो सूत्रों द्वारा एक जीव, बहुत जीव, एवं नैरयिक से लेकर वैमानिक तक चौबीस दण्डकों की अपेक्षा से विग्रहगति और अविग्रहगति की प्राप्ति से संबंधित प्रश्नोत्तर प्रस्तुत किये गये हैं। 1. 'जाव' शब्द यहाँ नैरपिक से लेकर वैमानिक तक चौवीस दण्डकों का सूचक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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