________________ 122] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [3 प्र.] भगवन् ! नारकों में से उद्वर्तमान ---- निकलता हुआ नारक जीव क्या एक भाग से एक भाग को आश्रित करके निकलता (उद्वर्तन करता) है ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न करना चाहिए। 3 उ.] गौतम ! जैसे उत्पन्न होते हुए नैरयिक आदि के विषय में कहा था, वैसे ही उद्वर्तमान नै रयिक आदि के (चौबीस ही दण्डकों के विषय में दण्डक कहना चाहिए। 4. [1] नेरइए णं भंते ! नेरदहितो उन्धट्टमाणे कि देसणंदेसं पाहारेति ? तहेव जाव (सु. 2 [1]), सब्वेण वा देसं आहारेति, सम्वेण वा सव्वं प्राहारेति / [2] एवं जाव वेमाणिए / 4 / [4.1 प्र.] भगवन् ! नैरयिकों से उद्वर्तमान नैरयिक क्या एक भाग से एक भाग का आश्रित करके प्राहार करता है ? इत्यादि प्रश्न पूर्ववत् करना चाहिए। |4-1 उ.] गौतम ! यह भी पूर्वसूत्र (2-1) के समान जानना चाहिए; यावत् सर्वभागों से एक भाग को आश्रित करके आहार करता है, अथवा सर्वभागों से सर्वभागों को आश्रित करके माहार करता है। [4-2] इसी प्रकार यावत् वैमानिकों तक जानना चाहिए। 5. [1] नेरइए णं भंते ! नेरइएसु उववन्ने कि देसणंदेस उववन्ने ? एसो वि तहेब जाव सम्वेणंसव्वं उववन्ने। [2] जहा उववज्जमाणे उध्वट्टमाणे य चत्तारि दंडगा तहा उववन्नेणं उबट्टण वि चत्तारि दंडगा भाणियस्वा / सवेणंसव्वं उबन्ने; सध्वेण वा देसं पाहारेति, सव्वेण वा सव्वं श्राहारेति, एएणं अभिलावेणं उववन्ने वि, उव्व? वि नेयब्ध / 8 / [5.1 प्र.] भगवन् ! नारकों में उत्पन्न हुया नैरयिक क्या एक भाग से एक भाग को अाश्रित करके उत्पन्न हुआ है ? इत्यादि प्रश्न पूर्ववत् करना चाहिए। [5.1 उ.] गौतम ! यह दण्डक भी उसी प्रकार जानना, यावत्-सर्वभाग से सर्वभाग को आश्रित करके उत्पन्न होता है। [5-2] जैसे उत्पद्यमान और उद्वर्तमान के विषय में चार दण्डक कहे, वैसे ही उत्पन्न और उट् वृत्त के विषय में भी चार दण्डक कहने चाहिए। (यथा-'सर्वभाग से सर्वभाग को आश्रित करके उत्पन्न', तथा सर्वभाग से एक भाग को आश्रित करके आहार, या सर्वभाग से सर्वभाग को आश्रित करके पाहार ; इन शब्दों द्वारा उत्पन्न और उवृत्त के विषय में भी समझ लेना चाहिए / 6. नेर इए गं भंते ! नेरइएसु उववज्जमाणे कि प्रद्धगद्ध उववज्जति 1 ? अद्धणंसव्वं उववाति 2 ? सम्वेणंबद्ध उववज्जइ 3 ? सव्वेणंसव्वं उववज्जति 4 ? जहा पढमिल्लेणं अट्ट दंडगा तहा प्रद्धण वि अट्ठ दंडगा भाणितव्वा / नवरं हि देसेणंदेसं उववज्जति तहि प्रद्धश्रद्धं ववज्जावेयन्वं, एयं णाणत्तं / एते सम्वे वि सोलस दंडगा भाणियव्वा / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org