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________________ बारहवां शतक : उद्देशक 10) [235 त्रिप्रदेशी स्कन्ध अात्मा और प्रात्मा तथा नो प्रात्मा--उभय रूप से अवक्तव्य है। 8. एक देश के प्रादेश से, सद्भावपर्याय की अपेक्षा से और बहत देशों के आदेश से, उभयपर्याय की विवक्षा से त्रिप्रदेशी स्कन्ध, आत्मा और आत्माएँ तथा नो आत्माएं, इस प्रकार उभयरूप से प्रवक्तव्य है। 6. बहुत देशों के आदेश से सद्भाव-पर्याय की अपेक्षा से और एक देश के आदेश से उभयपर्याय की अपेक्षा से त्रिप्रदेशी स्कन्ध प्रात्माएँ और आत्मा-नो प्रात्मा-उभयरूप से प्रवक्तव्य है। ये तीन भंग जानने चाहिए / १०–एक देश के आदेश से असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से और एक देश के आदेश से उभयपर्याय की अपेक्षा से त्रिप्रदेशी स्कन्ध नो प्रात्मा और प्रात्मा-नो आत्मा-उभयरूप से प्रवक्तव्य है। १-एक देश के प्रादेश से असदभाव पर्याय को अपेक्षा से और बहत देशों के आदेश से और तदुभय-पर्याय को अपेक्षा से त्रिप्रदेशो स्कन्ध नोग्रात्मा और आत्माएँ तथा नो प्रात्मा इस उभयरूप से प्रवक्तव्य है / १२-बहुत देशों के आदेश से असद्भाव पर्याय को अपेक्षा से और एक देश के आदेश से तदुभय पर्याय की अपेक्षा से, त्रिप्रदेशो स्कन्ध नो-यात्माएँ और प्रात्मा तथा नो-यात्मा इस उभयरूप से प्रवक्तव्य है। १३-एक देश के आदेश से सदभाव पर्याय की अपेक्षा आदेश से असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से और एक देश के आदेश से तदुभय पर्याय की अपेक्षा से, त्रिप्रदेशी स्कन्ध कञ्चित् आत्मा, नो आत्मा और प्रात्मा-नो आत्मा-उभयरूप से अवक्तव्य है / इसलिए हे गौतम ! त्रिप्रदेशी स्कन्ध को कथंचित् आत्मा, यावत्-प्रात्मा-नो आत्मा उभयरूप से प्रवक्तव्य कहा गया है। विवेचन-त्रिप्रदेशी स्कन्ध के आत्मा-नो आत्मा-सम्बन्धी तेरह भंग-प्रस्तुत विषय में त्रिप्रदेशी स्कन्ध के तेरह भंग होते हैं उनमें से पूर्वोक्त सप्त भंगों में से सकलादेश से सम्पूर्ण स्कन्ध की अपेक्षा से तीन भंग असंयोगी हैं, तत्पश्चात् नौ भंग द्विकसंयोगी हैं तथा एक भंग ( तेरहवाँ) त्रिकसंयोगी है / ' 30. [1] आया भंते ! चउप्पएसिए खंधे, अन्ने० पुच्छा। गोयमा ! चउप्पएसिए खंधे सिय पाया 1, सिय नो आया 2, सिय अवत्तव्यं-माया ति य नो आया ति य 3, सिय आया य नो पाया य 4-7, सिय आया य अवत्तव्वं 8-11, सिय नो आया य प्रवत्तन्वं 12-15, सिय माया य नो आया य अक्त्तव्वं--प्राया ति य नो आया ति य 16, सिय प्राया यनो आया य प्रवत्तबाइं-आयाओ य तो आयाओय 17, सिय आया य नो आयाओ य अवत्तव्वंआया ति य नो आया ति य 18, सिय आयाओ य नो पाया य अवत्तव्वं-आया ति य नो पाया ति य 19 / [30-1 प्र.] भगवन् ! चतुष्प्रदेशी स्कन्ध आत्मा (सद्रूप) है, अथवा उससे अन्य (असद्रूप) है ? [30-1 उ.] गौतम ! चतुष्प्रदेशी स्कन्ध-(१) कथंचित् प्रात्मा है, (2) कथंचित् नो आत्मा है (3) प्रात्मा-नो-पात्मा उभयरूप होने से--अवक्तव्य है। (4-7) कथंचित् आत्मा और नो आत्मा है (एकवचन और बहुवचन की अपेक्षा से चार भंग); (८-११)-कथञ्चित् आत्मा और 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 595 (ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. 4, पृ. 2126 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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