________________ 108] [ व्याख्याप्राप्तसूत्र _ [3-1. प्र.] भगवन् ! सूर्य जिस क्षेत्र को प्रकाशित करता है, क्या वह क्षेत्र सूर्य से स्पृष्टस्पर्श किया हुआ होता है, या अस्पृष्ट होता है ? [3-1. उ.] गौतम ! वह क्षेत्र सूर्य से स्पृष्ट होता है और यावत् उस क्षेत्र को छहों दिशाओं में प्रकाशित करता है। [2] एवं उज्जोवेदि ? तवेति ? पभासेति ? जाव नियमा छद्दिसि / [3-2] इसी प्रकार उद्योतित करता है, तपाता है और बहुत तपाता है, यावत् नियमपूर्वक छहों में दिशात्रों अत्यन्त तपाता है / 4. [1] से नणं भंते ! सव्वंति सव्वावंति फुसमाणकालसमयंसि जावतियं खेत्तं फुसइ तावतियं फुसमाणे पुढे ति वत्तव्वं सिया? . हता, गोयमा ! सम्बंति जाव वत्तव्वं सिया। [4-1. प्र.] भगवन् ! स्पर्श करने के काल-समय में सूर्य के साथ सम्बन्ध रखने वाले (सर्वाय) जितने क्षेत्र को सर्व दिशाओं में सूर्य स्पर्श कर रहा होता है, क्या वह क्षेत्र 'स्पृष्ट' कहा जा सकता है ? [4-1 उ.] हाँ, गौतम ! वह 'सर्व' यावत् स्पर्श करता हुआ स्पृष्ट ; ऐसा कहा जा सकता है / [2] तं भंते ! कि पुटु फुसति अपुट्ट फुसइ? जाव नियमा छसि / [4-2 प्र.] 'भगवन् ! सूर्य स्पृष्ट क्षेत्र का स्पर्श करता है. या अस्पृष्ट क्षेत्र का स्पर्श करता है ? [4-2 उ.] गौतम ! सूर्य स्पृष्ट क्षेत्र का स्पर्श करता है, यावत् नियमपूर्वक छहों दिशानों में स्पर्श करता है। विवेचन-सूर्य के उदयास्तक्षेत्रस्पादिसम्बन्धी प्ररूपणा–प्रस्तुत चार सूत्रों में सूर्य के द्वारा किये जाते हुए क्षेत्रस्पर्श तथा ताप द्वारा उक्त को प्रकाशित, प्रतापित एवं स्पृष्ट करने के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर अंकित हैं। सूर्य कितनी दूर से दिखता है और क्यों ?--सूर्य के 184 मण्डल कहे गये हैं। कर्कसंक्रान्ति में सूर्य सर्वाभ्यन्तर (सब के मध्य वाले) मण्डल में प्रवेश करता है। उस समय वह भरतक्षेत्रवासियों को साधिक 47263 योजन दूर से दीखता है। इतनी दूर से दिखाई देने का कारण यह है कि चक्षु अप्राप्यकारी इन्द्रिय है, यह अपने विषय (रूप) को छुए बिना ही दूर से देख सकती है। अन्य सब इन्द्रियां प्राप्यकारी हैं / यहाँ चक्खुफासं (चक्षुःस्पर्श) शब्द दिया गया है, उसका अर्थ-आँखों का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org