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________________ प्रथम शतक : उद्देशक-५] [ 101 दसवाँ-उपयोगद्वार 26. इमोसे गंजाव नेरइया कि सागारोवउत्ता, अणागारोवउत्ता? गोयमा ! सागारोवउत्ता वि, अणागारोवउत्ता वि / [26 प्र.) भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नारक जीव क्या साकारोपयोग से युक्त हैं अथवा अनाकारोपयोग से युक्त हैं ?' [26 उ.] गौतम ! वे साकारोपयोगयुक्त भी हैं और अनाकारोपयोगयुक्त भी हैं। 27. [1] इमीसे णं जाव सागारोवओगे वट्टमाणा कि कोहोवउत्ता? सत्तावीसं भंगा। [2] एवं प्रणागारोवउत्ते वि सत्तावीसं भंगा / [27-1 प्र. भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के साकारोपयोगयुक्त नारक जीव क्या क्रोधोपयुक्त हैं; यावत् लोभोपयुक्त हैं ? [27-1 उ.] गौतम ! इनमें क्रोधोपयुक्त इत्यादि 27 भंग कहने चाहिए / [27-1] इसी प्रकार अनाकारोपयोगयुक्त में भी क्रोधोपयुक्त इत्यादि सत्ताईस भंग कहने चाहिए। विवेचन--नारकों का क्रोधोपयुक्त इत्यादि निरूपणपूर्वक नौवाँ एवं दसवाँ योग-उपयोगद्वारप्रस्तुत चार सूत्रों (24 से 27 तक) में नारकों में तीन योग और दो उपयोग बताकर उक्त दोनों प्रकार के नारकों में क्रोधोपयुक्त आदि पूर्वोक्त 27 भंगों का निरूपण किया गया है। योग का अर्थ यहाँ हठयोग आदि नहीं है, किन्तु उसका खास अर्थ हैं-प्रयुजन या प्रयोग / योग का तात्पर्य है -प्रात्मा की शक्ति को फैलाना / वह मन, वचन और काया के माध्यम से फैलाई जाती है। इसलिए इन तीनों की प्रवृत्ति, प्रसारण या प्रयोग को योग कहा जाता है / यद्यपि केवल कार्मणकाययोग में 80 भंग पाये जाते हैं, किन्तु यहाँ सामान्य काययोग की विवक्षा से 27 भंग ही समझने चाहिए। उपयोग का अर्थ-जानना या देखना है। वस्तु के सामान्य (स्वरूप) को जानना अनाकारउपयोग है और विशेष धर्म को जानना साकारोपयोग है / दूसरे शब्दों में, दर्शन को अनाकारोपयोग और ज्ञान को साकारोपयोग कहा जा सकता है।' ग्यारहवां-लेश्याद्वार२८. एवं सत्त वि पुढवीओ नेतत्वाप्रो / णाणत्तं लेसासु / गाहा काऊ य दोसु, ततियाए मीसिया, नीलिया चउत्थीए। पंचमियाए मीसा, कहा, तत्तो परमकण्हा // 7 // 1. (क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 73 (ख) 'आकारो-विशेषांशग्रहणशक्तिस्तेन सहेति साकारः, तद्विकलोनाकारः सामान्यग्राहीत्यर्थः। --भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 73 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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