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________________ 134] [ध्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र अहम्मपलज्जणा अहम्मसमुदायारा अहम्मेणं चेव वित्ति कप्पेमाणा विहरंति, एएसि णं जीवाणं सुत्तत्तं साहू / एए णं जीवा सुत्ता समाणा नो बहूर्ण पाणाणं भूयाणं जोवाणं सत्ताणं दुक्खणयाए सोयणयाए जाव परियावणयाए वीति / एए गं जीवा सुत्ता समाणा अप्पाणं वा परं वा तदुभयं वा नो बहूहिं अहम्मियाहि संजोयणाहि संजोएत्तारो भवंति / एएसि गं जीवाणं सुत्तत्तं साहू / जयंती ! जे इमे जीवा धम्मिया धम्माणुया जाव धम्मेणं चेव वित्ति कप्पेमाणा विहरंति, एएसि णं जीवाणं जागरियत्तं साहू / एए णं जीवा जागरा समाणा बहूणं पाणाणं जाव सत्ताणं प्रदुक्खणयाए जाव अपरियावणयाए बटुंति / एते णं जीवा जागरमाणा अप्पाणं वा परं वा तदुभयं वा बहूहि धम्मियाहिं संजोयणाहिं संजोएत्तारो भवंति / एए णं जीवा जागरमाणा धम्मजागरियाए अप्पाणं जागरइत्तारो भवति / एएसि णं जीवाणं जागरियत्तं साहू / से तेणठेणं जयंती ! एवं बुच्चइ-'अत्थेगतियाणं जीवाणं सुत्ततं साहू, अत्थेगतियाणं जीवाणं जागरियत्तं साहू . [18-2 प्र.] भगवन् ! ऐसा किस कारण कहते हैं कि कुछ जीवों का सुप्त रहना और कुछ जीवों का जागृत रहना अच्छा है ? [18-2 उ.] जयन्ती ! जो ये अधार्मिक, अधर्मानुसरणकर्ता, अमिष्ठ, अधर्म का कथन करने वाले, अधर्मावलोकनकर्ता, अधर्म में आसक्त, अधर्माचरणकर्ता और अधर्म से हो आजीविका करने वाले जीव हैं, उन जीवों का सप्त रहना अच्छा है: क्योंकि ये जीव सप्त रहते हैं. तो प्राणों, भूतों, जीवों और सत्त्वों को दुःख शोक और परिताप देने में प्रवृत्त नहीं होते। ये जीव सोये रहते हैं तो अपने को, दूसरे को और स्व-पर को अनेक अधार्मिक संयोजनाओं (प्रपंचों) में नहीं फसाते / इसलिए इन जीवों का सुप्त रहना अच्छा है। 'जयन्ती ! जो ये धार्मिक हैं, धर्मानुसारी, धर्मप्रिय, धर्म का कथन करने वाले, धर्म के अवलोकनकर्ता, धर्मासक्त, धर्माचरणी. और धर्म से ही अपनी आजीविका करने वाले जीव हैं, उन जीवों का जाग्रत रहना अच्छा है, क्योंकि ये जीव जाग्रत हों तो बहुत से प्राणों, भूतों, जीवों और सत्वों को दुःख, शोक और परिताप देने में प्रवृत्त नहीं होते (अर्थात् ये अनेक जीवों के दुःख, शोक और परिताप को दूर करने में प्रवृत्त होते हैं)। ऐसे (धर्मिष्ठ) जीव जागत रहते हुए स्वयं को, दूसरे को और स्व-पर को अनेक धार्मिक संयोजनाओं में संयोजित करते रहते हैं / इसलिए इन जीवों का जाग्रत रहना अच्छा है। इसी कारण से, हे जयन्ती ! , ऐसा कहा जाता है कि कई जीवों का सुप्त रहना अच्छा है और कई जीवों का जागृत रहना अच्छा है / 19. [1] बलियत्तं भंते ! साहू, दुब्बलियत्तं साहू ? जयंती ! प्रत्यंगतियाणं जीवाणं बलियत्तं साहू, अत्यंगतियाणं जीवाणं दुबलियत्तं साहू / [16-1 प्र.] भगवन् ! जीवों की सबलता अच्छी है या दुर्बलता? [16-1 उ.] जयन्ती ! कई जीवों की सबलता अच्छी है और कई जीवों की दुर्बलता अच्छी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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