________________ बारहवां शतक : उद्देशक 1] [125 [31 प्र.] 'हे भगवन् !,' यों कह कर भगवान् गौतम ने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन-नमस्कार करके इस प्रकार पूछा भगवन् ! क्या शंख श्रमणोपासक अाप देवानुप्रिय के पास प्रबजित होने में समर्थ है ? [31 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है; इत्यादि समस्त वर्णन (श. 11 उ. 12 सू. 13-14 में उक्त) ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासकविषयक कथन के समान. यावत् सर्वदुःखों का अन्त करेगा; (यहाँ तक कहना चाहिए।) हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर श्री गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन-शंख श्रावक का उज्ज्वल भविष्य-भ. महावीर ने बताया कि शंख मेरे पास प्रवजित तो नहीं हो सकेगा; किन्तु वह बहुत वर्षों तक श्रमणोपासकपर्याय का पालन कर सौधर्मकल्प देवलोक में चार पल्योपम की स्थिति का देव होगा। वहाँ से च्यव कर महाविदेह में जन्म लेकर सिद्ध, बुद्ध मुक्त होगा, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करेगा। // बारहवां शतक : प्रथम उद्देशक सम्पूर्ण / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org