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________________ बारहवां शतक : उद्देशक 1] [111 ___3. तत्थ णं सावत्थीए नयरीए बहवे संखपामोक्खा समणोवासगा परिवसंति अड्ढा जाव अपरिभूया अभिगयजीवाजीवा जाव विहरंति / [3] उस श्रावस्ती नगरी में शंख आदि बहुत-से श्रमणोपासक रहते थे। (वे) पाढ्य यावत् अपरिभूत थे; तथा जीव, अजीव आदि तत्त्वों के ज्ञाता थे, यावत् विचरते थे। 4. तस्स णं संखस्स समणोवासगस्स उप्पला नाम भारिया होत्या, सुकुमाल जाव सुरूवा समणोवासिया अभिगयजीवाजीवा जाब विरहति / [4] उस 'शंख' श्रमणोपासक की भार्या (पत्नी) का नाम ‘उत्पला' था। उसके हाथ-पैर अत्यन्त कोमल थे, यावत् वह रूपवती एवं श्रमणोपासिका थी, तथा जीव-अजीव आदि तत्त्वों की जानने वाली यावत् विचरती थी। 5. तत्थ णं सावत्थीए नयरीए पोक्खली नाम समणोवासए परिवसति अड्ढे अभिगय जाव विहरति / [5] उसी श्रावस्ती नगरी में पुष्कली नाम का (एक अन्य) श्रमणोपासक रहता था। वह भी प्राढ्य यावत् जीव-अजीवादि तत्त्वों का ज्ञाता था यावत् विचरता था। विवेचन-श्रावस्ती नगरी के दो प्रमुख श्रमणोपासक - प्रस्तुत 4 सूत्रों (2 से 5 तक) में श्रावस्ती नगरी में बसे हए अनेक श्रमणोपासकों में से दो विशिष्ट इसलिए दिया गया है कि इन्हीं दोनों से सम्बन्धित वर्णन इस उद्देशक में किया जाने वाला है। श्रावस्ती नगरी प्राचीन काल में भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध के युग में बहुत ही समृद्ध नगरी थी। उसका कोष्ठक उद्यान प्रसिद्ध था, जहाँ केशी-गौतम-संवाद हुआ था। वर्तमान में श्रावस्ती का नाम 'सेहट-मेहट' है / अब यह वैसी समृद्ध नगरी नहीं रही। भगवान का श्रावस्ती में पदार्पण, श्रमणोपासकों द्वारा धर्मकथा श्रवण---- 6. तेणं कालेणं तेण समएणं सामी समोसढे / परिसा निग्गया जाव पज्जुवासइ / [6] उस काल और उस समय में (श्रमण भगवान महावीर) स्वामी श्रावस्ती पधारे / उनका समवसरण (धर्मसभा) लगा / परिषद् वन्दन के लिये गई, यावत् पर्युपासना करने लगी। 7. तए णं ते समणोवासगा इमोसे जहा पालभियाए (स० 11 उ० 12 सु० 7) जाव पज्जुवासंति। [7] तत्पश्चात् (श्रमण भगवान महावीर के आगमन को जान कर) वे (श्रावस्ती के) श्रमणोपासक भी, पालभिका नगरी के (श. 11, उ. 12, स. 7 में उक्त श्रमणोपासक के समान) उनके वन्दन एवं धर्मकथाश्रवण आदि के लिए गए) यावत् पर्युपासना करने लगे। 8. तए णं समणे भगवं महावीरे तेसि समणोवासगाणं तीसे य महतिमहालियाए० धम्मकहा जाव परिसा पडिगया। [8] तदनन्तर श्रमण भगवान महावीर ने उन श्रमणोपासकों को और उस महती महा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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