________________ ग्यारहवाँ शतक : उद्देशक-९] [33 के समान समझना चाहिए, यावत् वह कुमार राज्य, राष्ट्र, बल (सैन्य), वाहन, कोश, कोठार, पुर, अन्तःपुर और जनपद का स्वयमेव निरीक्षण (देखभाल) करता हुआ रहता था / विवेचन--शिव राजा से सम्बन्धित परिचय प्रस्तुत 5 सूत्रों (1 से 5 तक) में शिवराजा से सम्बन्धित 5 वातों का अतिदेशपूर्वक परिचय दिया गया है--(१) हस्तिनापुर नगर का वर्णन, (2) सहस्राम्रवन उद्यान का वर्णन, (3) शिव राजा का वर्णन, (4) शिव राजा को पटरानी धारिणी का वर्णन और (5) राजकुमार शिवभद्र-वर्णन / कठिन शब्दों का अर्थ- सम्बोउयपुष्फफलसमिद्ध-सभी ऋतुओं के पुष्पों एवं फलों से समृद्ध / गंदणवणसन्निगासे- नन्दनवन के समान / सादुफले-स्वादिष्ठ फल वाला। महताहिमवंत-महान् हिमवान् पर्वत के समान / प्रत्तए-पात्मज-पुत्र / पच्चुवेक्खमणे देखभाल करता हुआ / ' शिवराजा का दिक्प्रोक्षिक-तापस-प्रवज्याग्रहण-संकल्प 6. लए णं तस्स सिवस्स रणो अन्नया कदायि पुटवरतावरत्तकालसमयंसि रज्जधुरं चिते. माणस्स अयमेयारूवे अज्झथिए जाब समुप्पज्जित्था-"अस्थि ता मे पुरा पोराणाणं जहा तामालस्स (स. 3 उ. 1 सु. 36) जाव पुत्तेहि वड्डामि, पसूहि वड्डामि, रज्जेणं बड्डामि, एवं रठेणं बलेणं वाहणेणं कोसेणं कोट्ठागारेणं पुरेणं अंतेउरेणं वहामि, विपुलधण-कणग-रयण० जाव संतसारसावदेज्जेणं प्रतीव अतीव अभिवढामि, तंकि णं अहं पुरा पोराणाणं जाव एगंतसोक्खयं उवेहमाणे विहरामि ? तं जाव ताव अहं हिरण्णेणं वड्डामि तं चेव जाव अभिवड्ढामि, जावं च मे सामंतरायाणो वि वसे बति, ताक्ता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए जाव जलते सुबहुं लोहीलोहकडाकडुच्छ्यं तंबियं तावसभंडथं घडावेत्ता, सिवभई कुमारं रज्जे ठावित्ता, तं सुबहु लोहोलोहकडाहकडुच्छुयं तंबियं तावसभंडयं गहाय जे इमे गंगाकूले वाणपत्था तावसा भवंति, तं जहा होत्तिया पोत्तिया जहा उववातिए जान' कट्ठसोल्लियं पिव अप्पाणं करेमाणा विहरंति / तत्थ णं जे ते दिसापोक्खियतावसा तेसि अंतियं मुडे भवित्ता दिसापोक्खिततावसत्ताए पव्वइत्तए / पन्वइते वि य णं समाणे अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिहिस्सामि.--. कप्पति मे जावज्जीवाए छठंछठेणं अणिक्खित्तेणं दिसाचक्कवालएणं तबोकम्मेणं उड्ढे बाहाओ पगिज्झिय पगिज्झिय जाव विहरित्तए" त्ति कटु; एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं जाव जलंते सुबहुं 1. भगवती. विवेचन, भा. 4 (पं. घेवरचन्दजी) / पृ. 1874 2. इसके लिए देखिये भगवतीसत्र शतक 3, उ.१, स. 36 3. देखिये औषपातिकमूत्र सू. 38 पत्र 90 प्रागमोदयः में पाठ--.'कोत्तिया जन्नई सड़ई थालई हुंबउटा दंतुक्खलिया उम्मज्जगा सम्मज्जगा निमज्जगा संपक्खाला दक्षिणकूलगा उत्तरकूलगा संखधमगा कूलधममा मिगलुद्धया हथितावसा उद्दडगा दिसापोक्खिणो वकवासिणो चेलवासिणो जलवासिणो रुखमूलिया अंबुभक्खिणो वाउभक्खिणो सेवालभक्खिणो मूलाहारा कंदाहारा तयाहारा पत्ताहारा पुप्फाहारा फलाहारा बीयाहारा परिसडियकंद-मूल तय-पत्त-पुप्फ-फलाहारा जलाभिसेयकढिणगाया आयावणाहि पंचम्गितावेहि इंगालसोल्लियं कंसोल्लियं ति / 4. श्रीषपातिकसूत्र के अतिदेश वाले इस पाठ का अनुवाद / कोष्ठक दे कर दे दिया गया है। - सं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org