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________________ अट्ठमो उद्देसओ : अष्टम उद्देशक नलिण : नलिन (के जीव सम्बन्धी) 1. नलिणे णं भंते ! एगपत्तए कि एगजोवे, अणेगजीवे ? एवं चेव निरयसेसं जाव अगंतखुत्तो। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति। // एक्कारसमे सए अट्ठमो उद्देसओ समत्तो // 11.8 // __ [1 प्र.] भगवन् ! एक पत्ते वाला नलिन (कमल-विशेष) एक जीव वाला होता है, या अनेक जीव वाला ? [1 उ.] गौतम ! इसका समग्र वर्णन पूर्ववत् उत्पल उद्देशक के समान करना चाहिए; * यावत् सभी जीव अनन्त वार उत्पन्न हो चुके हैं, यहाँ तक कहना चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है,' यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरण करते हैं। विवेचन--प्रायः एक समान आठ उद्देशक—प्रथम उद्देशक 'उत्पल' से लेकर आठवें 'नलिन' उद्देशक तक उत्पलादि अाठ वनस्पतिकायिक जीवों का 32 द्वार के माध्यम से वर्णन किया गया है। इनमें पारस्परिक अन्तर बताने वाली तीन गाथाएँ वृत्तिकार ने उद्धृत की हैं। यथा--- सालंमि धणुपुहत्तं होइ पलासे य गाउययुहत्तं / जोयणसहस्समाहियं अबसेसाणं तु छण्हंपि // 1 // कुम्भीए नालियाए वासपुहत्तं ठिई उ बोद्धव्वा / दसवाससहस्साई प्रवसेसाणं तु छण्हं पि // 2 // कुभीए नालियाए होति पलासे य तिणि लेसाओ। चत्तारि उ लेसाओ, अवसेसाणं तु पंचण्हं // 3 // अर्थ-शालक की उत्कृष्ट अवगाहना धनुषपृथक्त्व और पलाश की उत्कृष्ट अवगाहना गव्यूतिपृथक्त्व होती है। शेष उत्पल, नलिन, पद्म, कुम्भिक, कणिका और नालिक को उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजल से कुछ अधिक होती है / / 1 / / कुम्भिक और नालिक की उत्कृष्ट स्थिति वर्षपृथक्त्व है। शेष 6 को उत्कृष्ट स्थिति एक हजार वर्ष की होती है / / 2 / / / कुम्भिक, नालिक और पलाश में पहले की तीन लेश्याएँ और शेष पाँच में चार लेश्याएँ होती है / / 3 / / ग्यारहवां शतक : अष्टम उद्देशक समाप्त / 1. (क) भगवती. अ. ति. पत्र 514 (ख) भगवती. विवेचन, भा. 4, (पं. घेवर.) प्र. 1873 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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