________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र तेजोलेश्या और देवोत्पत्ति नहीं--देव तेजोलेश्यायुक्त होते हैं, इसलिए प्रशस्त वनस्पति जो तेजोलेश्यायुक्त होती है, उसी में वे उत्पन्न होते हैं। पलाश प्रशस्त वनस्पति नहीं है, इसमें तेजोलेश्या नहीं होती। तीन अप्रशस्त लेश्याएं ही पाई जाती हैं, जिनके 26 अग उच्छ्वासक द्वार के समान होते हैं।' // ग्यारहवां शतक : तृतीय उद्देशक समाप्त // 2. भगवती. अ. वत्ति, पत्र 514, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org