________________ विषयानुक्रम पृष्ठांक 6-23 ग्यारहवाँ शतक प्राथमिक-बारह उद्देशकों का परिचय 3, संग्रहणीमाथार्थ 5, बारह उद्देशकों का स्पष्टीकरण 5, एकार्थक उत्पलादि का पृथक् ग्रहण क्यों ? 5 प्रथम उद्देशक : उत्पल (उत्पलजीव चर्चा) बत्तीस द्वारसंग्रह 6-1. उत्पातद्वार 6, 2. परिमाणद्वार 7, 3. अपहारद्वार 8, उत्पल जीव की अपेक्षा से अपहारद्वार 8, 4. उच्चत्वद्वार 8, 5-8. ज्ञानावरणीयादि-बन्ध-वेद-उदयउदीरणाद्वार 8, उत्पलजीव के बन्धक-प्रबन्धक, वेदक-अवेदक उदयी अनुदयी, उदीरक-अनूदीरक सम्बन्धी विचार 10, ज्ञानावरणीयादि कर्मों के बंध आदि क्यों और कैसे ? 10, एक अनेक जीब बन्धक आदि कैसे ? 10, वेदक एवं उदोरक भंग 10, 9. लेश्या द्वार 10, उत्पलजीवों में लेश्याएं 11, लेश्याओं के भंगजाल का नक्शा 11, असंयोगी 8 भंग 11, द्विकसंयोगी 24 भंग 11, त्रिकसंयोगी 32 भंग 11, चतु:संयोगी 16 भंग 12, 10-13 दृष्टि-ज्ञान-योगउपयोगद्वार 12, उत्पलजीवों में दृष्टि, ज्ञान, योग एवं उपयोग की प्ररूपणा 13, 14-15-16, वर्ण-रसादि-उच्छवासक-ग्राहारकद्वार 13, उत्पलजीवों के वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श 14, उच्छवास-निश्वास 14, असंयोगी, द्विकसंयोगी, त्रिकसंयोगी भंग 15, आहारक-अनाहारक 15, 17-18-19 विरतिद्वार, क्रियाद्वार और बन्धकद्वार 15, 20-21 संज्ञाद्वार और कवायद्वार 16, 22-25 तक स्त्रीवेदादिवेदक-अन्धक-संज्ञी-इन्द्रियद्वार 17, 26-27 अनुबन्ध-संवेधद्वार 18, उत्पलजीव का अनुबन्ध और कायसंवेध 20, 28-31 तक ग्राहार-स्थिति-समुद्घात उद्वर्तनाद्वार 20 उत्पलजीवों के आहार, स्थिति, समुद्घात और उद्वर्तन विषयक प्ररूपणा 22, नियमतः छह दिशाओं से आहार क्यों? 22, अनन्तर उद्वर्तन कहाँ और क्यों ? समस्त संसारी जीवों का उत्पल के मुलादि में जन्म 23 द्वितीय उद्देशक : शालूक (के जीव की चर्चा) शालूक जीव सम्बन्धी वक्तव्यता 24 तृतीय उद्देशक : पलाश (के जीवसम्बन्धी चर्चा) उत्पलोद्देशक के समान प्रायः सभी द्वार 25 चतुर्थ उद्देशक : कुमिक (के जीव सम्बन्धी) तृतीय उद्देशक के अतिदेशपूर्वक कुभिक वर्णन 27 पंचम उद्देशक : नाडीक जीव सम्बन्धी चर्चा नालिक-नाडीक वनस्पति का स्वरूप 28 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org