________________ अभिमत ......श्रीस्थानांगसूत्र ज्ञानसम्पदा का अखूट भण्डार है। कहीं पुरुषों के चार प्रकार बता कर मनुष्य को मनुष्य बनने की कला सिखाई जा रही है तो कहीं वृक्षों के चार प्रकार बता कर मनुष्यों को गुण-ग्रहण का आदर्श पाठ पढ़ाया जा रहा है। हमारे वीतराग पाचायों के उपकार सचमुच अनुपम हैं। """ग्रन्थमाला की लड़ी की कड़ी में श्रीस्थानांगसूत्र का अपना एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। अनुवाद की भाषा बड़ी सरल है, सुबोध है, सुगम है / साधारण से साधारण व्यक्ति भी उसे हृदयंगम कर सकता है। शैली बड़ी ही रोचक है / सभी कुछ सुन्दर बन पड़ा है। परमश्रद्धेय युवाचार्य श्रीमधुकर मुनिजी महाराज ने अपने तत्त्वावधान में इस अनुवाद-कार्य को सम्पन्न करवाया है, यह सब के लिए सौभाग्य की बात है। मैं आदरास्पद युवाचार्यश्री को सरस्वती के महामन्दिर की इस श्रुतसेवा के लिए साधुवाद देता हूँ। -(जैनभूषण) ज्ञान मुनि Jain Education International For Private & Personal use only www.jalnelibrary.org