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________________ प्रथम शतक : उद्देशक-४] [4] जैसे उदीर्ण (उदय में प्राए हुए) पद के साथ दो पालापक कहे गए हैं, वेसे हो 'उपशान्त' पद के साथ दो पालापक कहने चाहिए / विशेषता यह है कि यहाँ जीव पण्डितवीर्य से उपस्थान करता है और अपक्रमण करता है—बालपण्डितवीर्य से / 5. [1] से भंते ! कि प्राताए प्रवक्कमइ ? प्रणाताए प्रवक्कमइ ? गोयमा ! आताए प्रवक्कमइ, णो प्रणाताए अवक्कमइ। [5-1 प्र.] भगवन् ! क्या जीव आत्मा (स्व) से अपक्रमण करता है अथवा अनात्मा (पर) से करता है ? [5-1 उ.| गौतम ! प्रात्मा से अपक्रमण करता है, अनात्मा से नहीं करता। [2] मोहणिज्जं कम्मं वेदेंमाणे से कहमेयं भंते ! एवं? गोतमा ! पुत्विं से एतं एवं रोयति इदाणि से एयं एवं नो रोयइ, एवं खलु एतं एवं / [5-2 प्र.] भगवन् ! मोहनीय कर्म को वेदता हुआ यह (जीव) इस प्रकार क्यों होता है अर्थात् क्यों अपक्रमण करता है ? [5-2 उ.] गौतम ! पहले उसे इस प्रकार (जिनेन्द्र द्वारा कथित तत्त्व) रुचता है और अब उसे इस प्रकार नहीं रुचता; इस कारण यह अपक्रमण करता है। विवेचन-उदीर्ण-उपशान्त मोहनीय जीव के सम्बन्ध में उपस्थान-प्रपत्रमणादि प्ररूपणाप्रस्तुत चार सूत्रों में विशेषरूप से मोहनीय कर्म के उदय तथा उपशम के समय जीव की परलोक साधन के लिए की जाने वाली (उपस्थान) क्रिया तथा अपक्रमण क्रिया के सम्बन्ध में संकलित प्रश्नोत्तर हैं। मोहनीय का प्रासंगिक अर्थ यहाँ मोहनीय कर्म का अर्थ साधारण मोहनीय नहीं, अपितु 'मिथ्यात्वमोहनीय कर्म' विवक्षित है। श्री गौतमस्वामी का यह प्रश्न पूछने का आशय यह है कि कई अज्ञानी भी परलोक के लिए बहुत उग्र एवं कठोर क्रिया करते हैं अत: क्या वे मिथ्यात्व का उदय होने पर भी परलोक साधन के लिए क्रिया करते हैं या मिथ्यात्व के अनुदय से ? भगवान् का उत्तर स्पष्ट है कि मिथ्यात्व मोहनीय का उदय होने पर भी जीव परलोक सम्बन्धी किया करते हैं। वीरियताए-वीर्य (पराक्रम) का योग होने से प्राणी भी वीर्य कहलाता है। वीर्यता का आशय है वीर्ययुक्त होकर या वीर्यवान् होने से / और उसी वीर्यता के द्वारा वह परलोक साधन की क्रिया करता है / इससे स्पष्ट है कि उस क्रिया का कर्ता जीव ही है, कर्म नहीं / अगर जीव को क्रिया का कर्ता न माना जाए तो उसका फल किसे मिलेगा ? त्रिविध वीर्य-बालवीर्य, पण्डितवीर्य और बालपण्डितवीर्य / जिस जीव को अर्थ का सम्यक बोध न हो और सद्बोध के फलस्वरूप विरति न हो, यानी जो मिथ्यादृष्टि एवं अज्ञानी हो, वह बाल है, उसका वीर्य बालवीर्य है / जो जीव सर्वपापों का त्यागी हो; जिसमें विरति हो, जो क्रियानिष्ठ हो, वह पण्डित है, उसका वीर्य पण्डितवीर्य है। जिन त्याज्य कार्यों को मोहकर्म के उदय से त्याग नहीं सका, किन्तु त्यागने योग्य समझता है स्वीकार करता है, वह बालपण्डित है। जैसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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