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________________ प्रथम शतक : उद्देशक 3 ] [ 75 [11-1 उ.J हाँ, गौतम ! यहाँ भी उसो प्रकार 'पूर्ववत्' कहना चाहिए / विशेषता यह है कि अनुदोर्ण (उदय में नहीं आए हुए) का उपशम करता है, शेष तीनों विकल्पों का निषेध करना चाहिए। [2] जंतं भंते ! अदिण्णं उवसामेइ तं कि उट्ठाणेणं जाव पुरिसककारपरक्कमेण वा। [11-2 प्र.} भगवन् ! जीव यदि अनुदीर्ण कर्म का उपशम करता है, तो क्या उत्थान से यावत् पुरुषकार-पराक्रम से करता है या अनुत्थान से यावत् अपुरुषकार-पराक्रम से करता है ?' [11-2 उ.] गौतम ! पूर्ववत् जानना-यावत् पुरुषकार-पराक्रम से उपशम करता है। 12. से नणं भंते ! अप्पणा चेव वेदेइ अप्पणा चेव गरहइ ? एत्थ वि स च्चेव परिवाडी। नवरं उदिण्णं वेएइ, नो अदिग्णं वेएई। एवं जाव पुरिसक्कारपरक्कमे इ वा। [१२-प्र.] भगवन् क्या जीव अपने आप से ही वेदन करता है और गर्दा करता है ? [१२-उ. गौतम ! यहाँ भी पूर्वोक्त समस्त परिपाटी पूर्ववत् समझनी चाहिए / विशेषता यह है कि उदोर्ण को वेदता है, अनुदोर्ण को नहीं वेदता। इसी प्रकार यावत् पुरुषकार पराक्रम से वेदता है, अनुत्थानादि से नहीं वेदता है / 13. से नणं भंते ! अप्पणा चेव निज्जरेति अप्पणा चेव गरहइ ? एत्थ वि स च्चेव परिवाडी। नवरं उदयाणतरपच्छाकडं कम्म निज्जरेइ, एवं जाव परक्कमेइ बा। [१३-प्र.] 'भगवन् ! क्या जीव अपने आप से ही निर्जरा करता है और गर्दा करता है ?' [१३-उ.] गौतम ! यहाँ भो समस्त परिपाटो 'पूर्ववत्' समझनी चाहिए, किन्तु इतनी विशेषता है कि उदयानन्तर पश्चात्कृत कर्म को निर्जरा करता है। इसी प्रकार यावत् पुरुषकारपराक्रम से निर्जरा और गर्दा करता है / इसलिए उत्थान यावत् पुरुषकार-पराक्रम हैं। विवेचन-कांक्षामोहनीय कर्म को उदोरणा, गो, संवर, उपशम, वेदन, निर्जरा प्रादि से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर-प्रस्तुत चार सूत्रों में कांक्षामोहनीय कर्म की उदीरणा आदि के सम्बन्ध में तीन मुख्य प्रश्नोत्तर हैं-(१) उदीरणादि अपने आप से करता है, (2) उदीर्ण, अनुदीर्ण, अनुदीर्णउदोरणाभविक और उदयानन्तर पश्चात्कृत कर्म में से अनुदीर्ण-उदीरणाभविक को अर्थात्-जो उदय में नहीं आया है किन्तु उदीरणा के योग्य है उसकी उदोरणा करता है, (3) उत्थानादि पाँचों से कर्मोदीरणा करता है, अनुत्थानादि से नहीं / इसी के सन्दर्भ में उपशम, संवर, वेदन, गर्हा एवं निर्जरा के विषय में पूर्ववत् तीन-तीन मुख्य प्रश्नोत्तर अंकित हैं / उदीरणा : कुछ शंका-समाधान -(1) जोव काल आदि अन्य को सहायता से उदीरणा आदि करता है, फिर भी जीव को ही यहाँ कर्ता के रूप में क्यों बताया गया है ? इसका समाधान यह है कि जैसे घडा बनाने में कम्हार के अतिरिक्त गधा. दण्ड. चक्र. चीवर. काल प्रा होते हुए भो कुम्हार को ही प्रधान एवं स्वतंत्र कारण होने के नाते घड़े का कर्ता माना जाता है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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