________________ | व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र (35) अथवा एक धूमप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है। (इस तरह धूमप्रभापृथ्वी के साथ एक विकल्प होता है / ) (र. १५+श. १०+वा. ६+-पं. 3 धू. 1, यो त्रिकसंयोगी कुल भंग 35 होते हैं / ) विवेचन--तीन नरयिकों के नरकप्रवेशनकभंग-यदि तीन जीव नरक में उत्पन्न हों तो उनके असंयोगी (एक-एक) भंग 7, द्विक संयोगी 42 और त्रिक संयोगी 35, ये सब मिल कर 84 भंग होते हैं / जो ऊपर बतला दिए गए हैं / ' चार नरयिकों के प्रवेशनकभंग 19. चत्तारि भंते ! नेरइया नेरइयपवेसणए णं पविसमाणा कि रयणप्पभाए होज्जा ? पुच्छा / गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा हाज्जा 7 / अहवा एगे रयणप्पभाए, तिणि सक्करप्पभाए होज्जा 1 / अहवा एगे रयणप्पभाए, तिपिण बालुयप्पभाए होज्जा 2 / एवं जाव' अहवा एगे रयणप्पभाए, तिम्णि अहेसत्तभाए होज्जा 3-6 / अहवा दो रयणप्पभाए, दो सक्करप्पभाए होज्जा 1, एवं जाव' अहवा दो रयणप्पभाए, दो अहेसत्तमाए होज्जा 2-6 = 12 / ___ अहवा तिण्णि रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए होज्जा 1 / एवं जाव अहवा तिणि रयणप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा 2-6- 18 / अहवा एगे सक्करप्पभाए, तिणि वालुयप्पभाए होज्जा 1, एवं जहेव रयणप्पभाए उपरिमाहि समं चारियं तहा सक्करप्पभाए वि उरिमाहिं समं चारियव्वं 2-15= 33 / एवं एककेक्काए समं चारेयत्वं जाव अहवा तिणि तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा 15-15= अहवा एगे रयणप्यभाए, एगे सक्करप्पमाए, दो बालुयप्पभाए होज्जा 1 / अहवा एगे रयण . --. -- -.. 1. भगवती--अ. वत्ति. पत्र 442 2. 'जाव' पद से-'अहवा एगे रयणप्पभाए, तिणि पंकप्पभाए होज्जा 3 / अहवा एगे रयणप्पभाए, तिणि धूमप्प भाए होज्जा 4 // अहवा एगे रयणप्पभाए, तिष्णि तमध्यभाए होज्जा 5 / ' इस प्रकार तृतीय, चतुर्थ एवं पंचम भंग समझना चाहिए। 3. इसी प्रकार 'जाव' पद से---'अहवा दो रयणप्पभाए, दो वालुयप्पभाए होज्जा, 2 / अहवा दो रयणप्पभाए, दो __पंकप्पभाए होज्जा 3 / अहवा दो रयणप्पभाए, दो घूमप्पभाए होज्जा 4 / अहवा दो रयणप्पभाए, दो तमाए होज्जा।' इस प्रकार द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचम भंग समझना चाहिए। 4. एवं 'जाब' पद से--'अहवा तिणि रयणप्पभाए, एये वालुयप्पभाए 2 / अहवा तिण्णि रयणपभाए, एगे पंकल्प भाए 3 / अहवा तिण्णि रयणप्पभाए, एगे धूमप्पभाए 4 / अहवा तिष्णि रयणप्पभाए, एगे तमाए 5 / ' इस प्रकार द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचम भंग समझना / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org