________________ 426 ] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 3. कहि णं भंते ! जंबुद्दोवे दीवे ? किसंठिए णं भंते ! जंबुद्दोवे दीवे ? एवं जंबुद्दीवपण्णत्तो' भाणिय व्या जाव एवामेव सपुत्वावरेणं जंबुद्दीवे दोवे चोद्दस सलिलासयसहस्सा छप्पन्नं च सहस्सा भवंतीति मक्खाया। सेवं भंते ! सेवं भंते ति। / / नवम सए : पढ़मो उद्देसमो समत्तो।। [3 प्र.] भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप कहाँ है ? (उसका) संस्थान (आकार) किस प्रकार का है ? [3 उ.] गौतम ! इस विषय में जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में कहे अनुसार यावत्-इसी तरह जम्बूद्वीप नामक द्वीप में पूर्वसहित अपर (समुद्रगामी) चौदह लाख छप्पन हजार नदियाँ हैं, ऐसा कहा गया है; (यहाँ तक) कहना चाहिए। विवेचन--सपुव्वावरेणं व्याख्या--पूर्वसमुद्र और अपर (पश्चिम) समुद्र की ओर जा कर उनमें गिरने वाली नदियाँ / / चौदह लाख छप्पन हजार नदियाँ-जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के अनुसार इस प्रकार हैं--- 1. भरत और ऐरवत में गंगा, सिन्धु, रक्ता और रक्तवती, इन चार नदियों की प्रत्येक की चौदह-चौदह हजार सहायक नदियाँ हैं / 2. हेमवत और ऐरण्यवत में-रोहित, रोहितांशा, सुवर्णकूला और रूप्यकला इन चारों की, प्रत्येक की अट्ठाईस अट्ठाईस हजार नदियाँ हैं / ___3. हरिवर्ष और रम्यकवर्ष में-हरि, हरिकान्ता, नरकान्ता, नारीकान्ता, इन चारों को, प्रत्येक की छप्पन छप्पन हजार नदियाँ हैं। 4. महाविदेह में--शीता और शीतोदा की प्रत्येक की 5 लाख 32 हजार नदियाँ हैं / ये कुल मिला कर 1456000 नदियाँ होती हैं / जम्बूद्वीप का आकार-जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के अनुसार---जम्बूद्वीप सब द्वीपों के मध्य में सबसे छोटा द्वीप है / इसकी आकृति तेल का मालपूया, रथचक्र, पुष्करणिका, तथा पूर्ण चन्द्र की-सी गोल है / यह एक लाख योजन लम्बा चौड़ा है।' नवम शतक : प्रथम उद्देशक समाप्त / / 1. पाठान्तर --- 'जहा जंबुद्दोषपन्नत्तीए तहा यवं जोइसविहूणं / जाव-"खंडा जोयण वासा पध्वय कूडा य तित्थ सेढीओ। विजय इह सलिलाओ य पिंडए होति संगहणी // " --भगवती. अ. वृत्ति में इसकी व्याख्या भी मिलती है ।--सं. 2. भगवतो. वृत्ति, पत्र 425. 3. वही, पत्र 425 4. 'अयं णं जंबुद्दीवे दीवे "वट्ट तेल्लपूयसंठाणसंठिए, बट्ट रहबक्कबालसंठाणसं ठिए, बट्ट पुक्खरकन्निया संठाणसंठिए वट्ट पडिपुग्नचंदसंठाणसंठिए पन्नत्ते / " -जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति प. 15.1-308 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org