________________ समर्पण 'अप्पमत्ते सदा जये' की आगम वाणी जिनके जीवन में प्रतिपद चरितार्थ हुई जो दृढ़संकल्प के धनी थे जो उच्चकोटि के साधक थे, विरक्ति की प्रतिमूर्ति थे, कवि-मनीषी आप्तवाणी के अनन्यतमश्रद्धालु तथा उपदेशक थे, उन स्व० आचार्य प्रवर जी श्री जयमल्ल जी महाराज की पावन स्मृति में, सादर, सविनय समर्पित, __ -युवाचार्य, मधुकर मुनि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org