________________ 166 ] [ सूत्रकृतांगसूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध ७६०-बारह प्रकार की तपःसाधना द्वारा प्रात्मशुद्धि के लिए श्रम करने वाले (श्रमण) एवं 'जीवों को मत मारो' का उपदेश देने वाले (माहन) भ० महावीर स्वामी (केवलज्ञान के द्वारा) समन लोक को यथावस्थित (सम्यक्) जानकर त्रस-स्थावर जीवों के क्षेम - कल्याण के लिए हजारों लोगों के बीच में धर्मोपदेश (व्याख्यान) करते हुए भी एकान्तवास (रागद्वेषरहित आत्मस्थिति की साधना कर लेते हैं या अनुभूति कर लेते हैं। क्योंकि उनकी चित्तवृत्ति उसी प्रकार की (सदैव एकरूप) बनी रहती है। 761 --धम्म कहेंतस्स उ पत्थि दोसो, खंतस्स दंतस्स जितेंदियस्स। भासाय दोसे य विवज्जगस्स, गुणे य भासाय णिसेवगस्स // 5 // ७६१-श्रुत-चारित्ररूप धर्म का उपदेश करने वाले भगवान महावीर को कोई दोष नहीं होता, क्योंकि क्षान्त (क्षमाशील अथवा परीषहसहिष्णु), दान्त (मनोविजेता) और जितेन्द्रिय तथा भाषा के दोषों को वर्जित करने वाले भगवान् महावीर के द्वारा भाषा का सेवन (प्रयोग) किया जाना गुणकर है; (दोषकारक नहीं)। ७६२-महन्वते पंच अणुव्वते य, तहेव पंचासव संवरे य / विरति इह स्सामणियम्मि पण्णे, लवावसक्की समणे ति बेमि // 6 // ७६२-(घातिक) कर्मों से सर्वथा रहित हुए (लवावसी) श्रमण भगवान् महावीर श्रमणों के लिए पंच महाव्रत तथा (श्रावकों के लिए) पांच अणुव्रत एवं (सर्वसामान्य के लिए) पांच आश्रवों और संवरों का उपदेश देते हैं / तथा (पूर्ण) श्रमणत्व (संयम) के पालनार्थ वे विरति का (अथवा पुण्य का, तथा उपलक्षण से पाप, बंध, निर्जरा एवं मोक्ष के तत्त्वज्ञान का) उपदेश करते हैं, यह मैं कहता हूँ। विवेचन-भ. महावीर पर लगाए गए आक्षेपों का आद्रक मुनि द्वारा परिहार-प्रस्तुत 6 सूत्र गाथाओं में प्राजीवकमतप्रवर्तक गोशालक द्वारा भगवान् महावीर पर लगाए गए कतिपय प्राक्षेप और प्रत्येक बुद्ध आर्द्रक मुनि द्वारा दिये गये उनके निवारण का अंकन किया गया है / आक्षेपकार कौन, क्यों और कब?-यद्यपि मूल पाठ में आक्षेपकार के रूप में गोशालक का नाम कहीं नहीं आता, परन्तु नियुक्तिकार एवं वृत्तिकार इसका सम्बन्ध गोशालक से जोड़ते हैं, क्योंकि आक्षेपों को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि आक्षेपकार (पूर्वपक्षी) भ० महावीर से पूर्व परिचित होना चाहिए। वह व्यक्ति गोशालक के अतिरिक्त और कोई नहीं है, जो तीर्थंकर महावीर के पवित्र जीवन पर कटाक्ष कर सके / आक्षेप इसलिए किये गये थे, कि आर्द्र कमुनि भ. महावीर की सेवा में जाने से रुक कर पाजीवक संघ में आ जाएँ, इसीलिये जब पार्द्र कमुनि भ. महावीर की सेवा में जा रहे थे, तभी उनका रास्ता रोक कर गोशालक ने आर्द्र कमुनि के समक्ष भगवान् महावीर पर दोषारोपण किये।। 1. (क) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक 388 का सारांश (ग) जनसाहित्य का बहत् इतिहास भा-१ -165 (ख) सूत्रकृ. नियुक्ति गा-१९० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org