________________ [ सूत्रकृतांगसूत्र-द्वितीय शु तस्कन्ध तेसि णं भगवंता णं इमा एतारूवा जायामायावित्ती होत्था, तं जहा-चउत्थे भत्ते, छटठे भत्ते, प्रटमे भत्ते, दसमें भत्ते, दुवालसमे भत्ते, चोद्दसमे भत्ते, प्रद्धमासिए भत्ते, मासिए भत्ते, दोमासिए भत्ते, तेमासिए भत्ते, चउम्मासिए भत्ते, पंचमासिए मत्ते, छम्मासिए भत्ते, प्रदुत्तरं च णं उक्खिसचरगा णिक्वित्तचरगा उक्खित्तणिक्खित्तचरगा अंतचरगा पंतचरगा लहचरगा समुदाणचरगा संसट्टचरगा असंसद्धचरगा तज्जातसंसद्धचरगा दिटुलाभिया अदिटुलाभिया पुटुलाभिया अपुट्ठलाभिया भिक्खलाभिया अभिक्खलाभिया अण्णातचरगा अनगिलातचरगा प्रोवणिहिता संखादत्तिया परिमितपिंडवातिया सुद्धसणिया अंताहारा पंताहारा अरसाहारा विरसाहारा लहाहारा तुच्छाहारा अंतजीवी पंतजीवी पुरिमड्डिया प्राबिलिया निविगतिया अमज्ज-मंसासिणों णो णियामरसभोई ठाणादीता पडिमट्ठादी णेसज्जिया वीरासणिया दंडायतिया लगंडसाईणो पायावगा प्रवाउडा अकंडुया अणिठुहा धुतकेसमंसु-रोम-नहा सव्वगायपडिकम्मविप्पमक्का चिटठति। ते णं एतेणं विहारेणं विहरमाणा बहूई वासाई सामण्णपरियागं पाउणंति, बहूई वासाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता प्राबाहंसि उप्पण्णास वा अणुप्पणंसि वा बहूई भत्ताई पच्चक्खाईति, [बहूई भत्ताइं] पच्चक्खित्ता बहूई भत्ताई अणसणाए छेदेति, बहूणि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता जस्सट्टाए कोरति नग्गभावे मुंडभावे अण्हाणगे अदंतवणगे अछत्तए अणोवाहणए भूमिसेज्जा फलगसेज्जा कट्ठसेज्जा केसलोए बंभचेरवासे परघरपवेसे लद्धावलद्ध-माणावमाणणाम्रो होलणाम्रो निदणामो खिसणासो गरहगानो तज्जणाप्रो तालणाप्रो उच्चावया गामकंटगा बावीसं परोसहोक्सग्गा अहियासिज्जति तमझें पाराहेति, तमढं आराहिता चरमेहिं उस्सासनिस्सासेहि अणंतं अणुत्तरं निवाघातं निरावरणं कसिणं पडिपुण्णं केवलवरणाण-दसणं समुष्पाति, समुप्पाडित्ता ततो पच्छा सिझति बुझंति मुच्चंति परिनिब्वायंति सम्वदुक्खाणं अंत करेंति, एगच्चा पुण एगे गंतारो भवंति, अवरे पुण पुवकम्मावसेसेणं कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति, तं जहामहिड्डीएसु महज्जुतिएसु महापरक्कमेसु महाजसेसु महब्बलेसु महाणभावेसु महासोक्खेसु, ते णं तत्थ देवा भवंति महिटिया महज्जुतिया जाय महासुक्खा हारविराइतवच्छा कडगतुडितथंभितभुया सं(अं? ) गयकुडलमट्टगंडतलकण्णपीढधारी विचित्तहत्थामरणा विचित्तमालामउलिमउडा कल्लाणगपवरवस्थपरिहिता कल्लाणगपवरमल्लाणुलेवणधरा भासरबोंदी पलंबवणमालाधरा दिव्वेणं रूवेणं दिवेणं वणेणं दिव्वेणं गंधेणं दिवेणं फासेणं दिवेणं संघाएणं दिवेणं संठाणेणं दिव्वाए इड्डीए दिवाए जुतीए दिवाए पभाए दिवाए छायाए दिव्वाए अच्चीए दिवेणं तेएणं दिवाए लेसाए दस दिसानो उज्जोवेमाणा पभासेमाणा गतिकल्लाणा ठितिकल्लाणा प्रागमेस्समद्दया' वि भवंति, एस ठाणे पारिए जाव सम्वदुक्खप्पहीणमग्गे एगंतसम्मे साधू / दोच्चस्स ठाणस्स धम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिते / ७१४--इसके पश्चात् दूसरे धर्मपक्ष का विवरण इस प्रकार है इस मनुष्यलोक में पूर्व आदि दिशाओं में कई पुरुष ऐसे होते हैं, जो अनारम्भ 1. आगमेसि भद्देति-'पागमेसभवग्गहणेसिज्झति'—भविष्य में मनुष्यभव ग्रहण करके सिद्ध होते हैं। ----सू० चू० (मू. पा. टि.) पृ० 187 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org