SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 594
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 12 ] [ सूत्रकृतांगसूत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध पउमवरपोंडरीयं अणुपुवद्वितं जाव पडिरूवं / ते तत्थ तिण्णि पुरिसजाते पासति पहीणे तीरं अप्पत्ते जाव सेयंसि निसण्णे। तते णं से पुरिसे एवं वदासी-अहो णं इमे पुरिसा अखेत्तण्णा जाव णो मग्गस्स गतिपरक्कमण्णू, जण्णं एते पुरिसा एवं मण्णे-अम्हेतं पउमवरपोंडरीयं उण्णिक्खिस्सामो / णो खलु एयं पउमवरपोंडरीयं एवं उपिणक्खयब्वं जहा णं एते पुरिसा मण्णे / प्रहमंसि पुरिसे खेयण्णे जाब मग्गस्स गतिपरक्कमण्ण, अहमेयं पउमवरपोंडरीयं उपिणक्खिस्सामि इति वच्चा से पुरिसे अभिक्कमे तं पुक्खरणि, जाव जावं च णं अभिक्कमे ताव तावं च णं महंते उदए महंते सेते जाव विसण्णे चउत्थे पुरिसजाए। ६४२-एक-एक करके तीन पुरुषों के वर्णन के बाद अब चौथे पुरुष का वर्णन किया जाता है। तीसरे पुरुष के पश्चात् चौथा पुरुष उत्तर दिशा से उस पुष्करिणी के पास आ कर, किनारे खड़ा हो कर उस एक महान् उत्तम श्वेतकमल को देखता है, जो विशिष्ट रचना से युक्त यावत् (पूर्वोक्त विशेषणों से विशिष्ट ) मनोहर है। तथा वह वहाँ (उस पुष्करिणी में) उन तीनों पुरुषों को भी देखता है, जो तीर से बहुत दूर हट चुके हैं और श्वेतकमल तक भी नहीं पहुंच सके हैं अपितु पुष्करिणी के बीच में ही कीचड़ में फंस गए हैं / तदनन्तर उन तीनों पुरुषों (को देख कर उन) के लिए उस चौथे पुरुष ने इस प्रकार कहा'अहो! ये तीनों पुरुष खेदज्ञ (क्षेत्रज्ञ) नहीं हैं, यावत् (पूर्वोक्त विशेषणों से युक्त) मार्ग की गतिविधि एवं पराक्रम के विशेषज्ञ नहीं है / इसी कारण ये लोग समझते हैं कि 'हम उस श्रेष्ठ पुण्डरीक कमल को उखाड़ कर ले आएंगे; किन्तु यह उत्तम श्वेतकमल इस प्रकार नहीं निकाला जा सकता, जैसा कि ये लोग मान रहे हैं / "मैं खेदज्ञ पुरुष हूँ यावत् उस मार्ग की गतिविधि और पराक्रम का विशेषज्ञ हूँ। मैं इस प्रधान श्वेतकमल को उखाड़ कर ले आऊंगा इसी अभिप्राय से मैं कृतसंकल्प हो कर यहाँ आया हूँ।" यों कह कर वह चौथा पुरुष भी पुष्करिणी में उतरा और ज्यों-ज्यों वह आगे बढ़ता गया त्यों-त्यों उसे अधिकाधिक पानी और अधिकाधिक कीचड़ मिलता गया / वह पुरुष उस पुष्करिणी के बीच में ही भारी कीचड़ में फंस कर दुःखी हो गया / अब न तो वह इस पार का रहा, न उस पार का / इस प्रकार चौथे पुरुष का भी वही हाल हुआ। विवेचन-श्रेष्ठ पुण्डरीक को पाने में असफल चार व्यक्ति प्रस्तुत चार सूत्रों में पूर्वसूत्रणित पुष्करिणी के मध्य में विकसित एक श्रेष्ठ पुण्डरीक को पाने के लिए जी-तोड़ प्रयत्न करके असफल हुए चार व्यक्तियों की रूपक कथा है / यद्यपि चारों व्यक्तियों की पुष्करिणी के तट पर पाने, पुष्करिणी को एवं उसके ठीक बीच में स्थित श्रेष्ठ श्वेतकमल को देखने की चेष्टाओं तथा तदनन्तर उस श्वेतकमल को पाने के लिए किये जाने वाले प्रयत्न तथा उसमें मिलने वाली विफलता का वर्णन लगभग समान है / परन्तु चारों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003470
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages847
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy