________________ पंचमगणहर भयवं सिरिसुहम्मसामिपणीयं बिइयमंग सूयगडंगसुत्तं [बीओ सुयक्खंधो] पंचम गणधर भगवत् सुधर्मस्वामिप्रणीत द्वितीय अंग सूत्रकृतांगसूत्र (द्वितीय श्रुतस्कंध) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org