________________ पंचमगणहर भयवं सिरिसुहम्मसामिपणीयं बिइयमंगं सूयगडंगसुत्तं [पढमो सुयक्वंधो] पंचम गणधर भगवत् सुधर्मस्वामिप्रणेत द्वितीय अंग सूत्रक्तांगसूत्र (प्रथम श्रुतस्कंध) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org