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________________ ग्रन्थ : चतुर्दश अध्ययन प्राथमिक 0 सूत्रकृतांग सूत्र (प्र० श्रु.) के चौदहवें अध्ययन का नाम 'ग्रन्थ है। - ग्रन्थ शब्द गाँठ, पुस्तक एवं बाह्य-आभ्यन्तर परिग्रह के अर्थ में प्रयुक्त होता है। नियुक्तिकार के अनुसार ग्रन्थ शब्द का अर्थ बाह्य-आभ्यन्तर परिग्रह हैं। बाह्यग्रन्थ के मुख्य 10 प्रकार हैं-(१) क्षेत्र, (2) वस्तु, (3) धन-धान्य, (4) ज्ञातिजन, मित्र तथा द्विपद-चतुष्पद जीव, (5) वाहन, (6) शयन, (7) आसन, (8) दासी-दास, (इ) स्वर्ण-रजत, और (10) विविध साधन-सामग्री / इन बाह्य पदार्थों में मूर्छा रखना ही वास्तव में ग्रन्थ है। आभ्यन्तर ग्रन्थ के मुख्य 14 प्रकार हैं-(१) क्रोध, (2) मान, (3) माया, (4) लोभ, (5) राग (मोह), (6) द्वेष, (7) मिथ्यात्व, (8) काम (वेद), (6) रति (असंयम में रुचि) (10) अरति (संयम में अरुचि), (11) हास्य, (12) शोक, (13) भय और (14) जुगुप्सा। 0 उत्तराध्ययन सूत्र के क्षुल्लकनिर्गन्थीय अध्ययन के अनुसार जो इन दोनों प्रकार के ग्रन्थों का त्याग कर देता है, जिसे इन द्विविध ग्रन्थों से लगाव, आसक्ति या रुचि नहीं है, तथा निग्रन्थ मागे की प्ररूपणा करने वाले आचारांग आदि ग्रन्थों का जो अध्ययन, प्रशिक्षण करते हैं, वे निम्रन्थशिष्य कहलाते हैं। - निर्ग्रन्थ-शिष्य को गुरु के पास रहकर ज्ञपरिज्ञा से बाह्य आभ्यन्तर ग्रन्थों को जानकर प्रत्याख्यान परिज्ञा से त्यागना चाहिए। इत्यादि ग्रन्थविषयक प्रेरणा मुख्य होने से इस अध्ययन का नाम 'ग्रन्थ' रखा गया है / अथवा इस अध्ययन के प्रारम्भ में गंथं (ग्रन्थ) शब्द का प्रयोग होने से इसका नाम 'ग्रन्थ' है।' - शिष्य दो प्रकार के होते हैं--दीक्षाशिष्य और शिक्षाशिष्य। जो दीक्षा देकर शिष्य बनाया जाता है, वह दीक्षाशिष्य कहलाता है, तथा जो शैक्ष आचार्य आदि से पहले आचरण या (इच्छा, 1 (क) सूत्र कृ० नियुक्ति गाथा 127 से 131 तक (ख) सूत्र कृ० शी० वृत्ति पत्रांक 241 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003470
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages847
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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