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________________ 404 सूत्रकृतांग-बारहवां अध्ययन-समवसरण ___ अज्ञानवादी धर्मोपदेश में सर्वथा अनिपुण-शास्त्रकार कहते हैं--अज्ञानवादी अज्ञानवाद का आश्रय लेकर बिना विचारे असम्बद्ध भाषण करते हैं, इसलिए उनमें यथार्थ ज्ञान नहीं है। जो यथार्थ ज्ञानी होता है-वह विचारपूर्वक बोलता है, इसीलिए तो अज्ञानवादियों में मिथ्याभाषण की प्रवृत्ति है। वे धर्म का उपदेश अपने अनिपुण शिष्यों को देते हैं, तो ज्ञान के द्वारा ही देते हैं, फिर भी वे कहते हैं-अज्ञान से ही कल्याण होता है / परन्तु अज्ञान से कल्याण होना तो दूर रहा, उलटे नाना कर्मबन्धन होने से जीव नाना दुःखों से पीड़ित होता है / इसलिए अज्ञानवाद अपने आप में एक मिथ्यावाद है।' एकान्त-विनयवाद की समीक्षा 537. सच्चं असच्चं इति चिंतयंता, असाहु साहु ति उदाहरंता। ___ जेमे जणा वेणइया अणेगे, पुट्ठा वि भावं विणइंसु नाम // 3 // 538 अणोक्संखा इति ते उदाहु. अठे स ओभासति अम्ह एवं / 537. जो सत्य है, उसे असत्य मानते हुए तथा जो असाधु (अच्छा नहीं) है, उसे साधु (अच्छा) बताते हुए ये जो बहुत-से विनयवादी लोग हैं, वे पूछने पर भी (या न पूछने पर) अपने भाव (अभिप्राय या परमार्थ) के अनुसार विनय से ही स्वर्ग-मोक्ष प्राप्ति (या सर्वसिद्धि) बताते हैं। 538. (पूर्वाद्ध) वस्तु के यथार्थ स्वरूप का परिज्ञान न होने से व्यामूढ़मति वे विनयवादी ऐसा कहते हैं। वे कहते हैं- हमें अपने प्रयोजन (स्व-अर्थ) की सिद्धि इसी प्रकार से (विनय से) ही दीखती है। विवेचन-एकान्त विनयवाद को समीक्षा--प्रस्तुत गाथाओं में एकान्त विनयवाद की संक्षिप्त झाँकी दी गई है। विनयवाद का स्वरूप और प्रकार-विनयवादी वे हैं जो विनय को ही सिद्धि का मार्ग मानते हैं। वे कहते हैं-विनय से ही स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति होती है / वे गधे से लेकर गाय तक, चाण्डाल से लेकर ब्राह्मण तक एवं जलचर, खेचर, स्थलचर, उरपरिसर्प एवं भुजपरिसर्प आदि सभी प्रा पूर्वक नमस्कार करते हैं। नियुक्तिकार ने विनयवाद के 32 भेद बताए हैं। वे इस प्रकार है- (1) देवता, (2) राजा, (3) यति, (4) ज्ञाति, (5) वृद्ध, (6) अधम, (7) माता और (5) पिता / इन आठों का मन से, वचन से, काया स और दान से विनय करना चाहिए। इस प्रकार 844=32 भेद विनयवाद के हए। विनयवादी : सत्यासत्य विवेक रहित-इसके तीन कारण हैं--(१) जो प्राणियों के लिए हितकर है, सत्य है, वह मोक्ष या संयम है, किन्तु विनयवादी इसे असत्य बताते हैं, (2) सम्यग्ज्ञान-दर्शन-चारित्र मोक्ष 1 (क) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक 211 से 241 का सारांश (ख) सूत्रकृतांग नियुक्ति गा० 116 2 (क) सूत्रकृतांग शी० वृत्ति पत्रांक 208 (ख) सूत्रकृ० नियुक्ति गा० 119 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003470
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages847
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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