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________________ सूत्रकृताग-सप्तम अध्ययन-कुशील परिभाषित - जो प्रासुक एवं अचित्तसेवी हैं, अप्रासुक एवं दोषयुक्त आहार सेवन नहीं करते, वे सुशील हैं। - नियुक्तिकार ने वृ छ वृशीलों के नाम गिनाये हैं। वे कुशील परतीथिक भी है, स्वयूथिक भी। स्वयूथिक भी जो पार्श्वस्थ, अवसन्न, स्वछन्द आदि हैं वे कुशील हैं। 0 अतः ऐसे कुशीलों के सम्बन्ध में सभी पहलुओं से किया गया भाषण या निरूपण, साथ ही कुशील के अनुष्ठान के दुर्गतिगमनादि परिणामों का प्रतिपादन कुशील परिभाषा या कुशील परि भाषित अध्ययन का विषय है। 1 उद्देशकरहित प्रस्तुत अध्ययन में 30 गाथाओं तथा ऐसे स्वतीथिक-परतीर्थिक कुशीलों का वर्णन किया गया है, जिनका शील (आचारविचार) अहिंसा, सत्य, संयम, अपरिग्रहवत्ति या ब्रह्मचर्य के अनुकूल नहीं है, जो सरलभाव से अपने दोषों को स्वीकार एवं भूलों का परिमार्जन करके अपने पूर्वग्रह पर दृढ़ रहते हैं, शिथिल या कुत्सित एवं साधुधर्म विरुद्ध आचार-विचार को सुशील बताते हैं। साथ ही इसमें बीच-बीच में सुशील का भी वर्णन किया गया है / 7 साधक को सुशील और कुशील का अन्तर समझाकर कुशीलता से बचाना और सुशीलता के लिए प्रोत्साहित करना इस अध्ययन का उद्देश्य हैं / - यह अध्ययन सूत्र गाथा 381 से प्रारम्भ होकर 410 पर पूर्ण होता है / 3 (क) अफासुयपडिसेविय णामं भुज्जो य सीलवादी य / फासु वयंति सील अफासुया मो अभुजंता // 6 // जह णाम गोयमा चंडीदेवमा, वारिभद्दगा चेव / जे अग्निहोत्तवादी जलसोयं जेय इच्छति // 10 // -सूत्र०-नियुक्ति ---गौतम (मसग जातीय पाषंडी या गोनतिक) चण्डीदेवक, वारिभद्रक, अग्निहोत्रवादी, जलशौचवादी (भागवत) आदि कुशील के उदाहरण हैं / (ख) सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक 154 4 सूत्रकृतांग चूणि पृ० 151, पत्र 4 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003470
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages847
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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