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________________ 324 सूत्रकृतांग-षष्ठ अध्ययन-महावीर स्तव 368. अणुत्तरगं परमं महेसो, असेसकम्मं स विसोहइत्ता। ___ सिद्धि गति साइमत पत्ते, नाणेण सीलेण य दंसणेण // 17 // 366. रुक्खेसु णाते जह सामली वा, जंसी रति वेदयंती सुवण्णा। वणेसु या नंदणमाहु सेठे, णाणेण सोलेण य भूतिपन्ने // 18|| 370. थणियं व सहाण अणुत्तरे तु, चंदो व ताराण महाणुभागे। गंधेसु या चंदणमाहु सेठे, सेठे मुणोणं अपडिण्णमाहु // 16 // 371. जहा सयंभू उदहीण सेठे, णागेसु या धरणिदमाहु सेठे। खोतोदए वा रसवेजयंते, तवोवहाणे मुणिवेजयंते // 20 // 372. हत्थोस एरावणमाहु णाते, सोहे मियाणं सलिलाण गंगा। पक्खोस या गरुले वेणु देवे, णिन्वाणवादोणिह, णायपुत्ते // 21 // 373. जोहेसु णाए जह वीससेणे, पुप्फेसु वा जह अरविंदमाहु।। खत्तीण सेढे जह दंतवक्के, इसीण सेढे तह वद्धमागे / / 22 / / 374. दाणाण सेट्ठ अभयप्पदाणं, सच्चेस या अणवज्ज वदंति / ___तवेसु या उत्तमबंभचेरं, लोगुत्तमे समणे नायपुते // 23 // 375. ठितीण सेट्ठा लवसत्तमा वा, सभा सुधम्मा व सभाण सेट्ठा / निव्याणसेट्ठा जह सव्वधम्मा, ण णायपुत्ता परमत्थि णाणी // 24 // 366. जैसे लम्बे पर्वतों में निषधपर्वत श्रेष्ठ है तथा वलयाकार (चूड़ी के आकार के) पर्वतों में रुचक पवंत थंप्ठ है, वही उपमा जगत् में सबसे अधिक प्रज्ञावान् भगवान् महावीर की है। प्राज्ञपुरुषों ने मुनियों (के मध्य) में श्रमण महावीर को श्रेष्ठ कहा है। 367. भगवान महावीर ने अनुत्तर संसारतारक सर्वोत्तम) धर्म का उपदेश देकर सर्वोत्तम श्रेष्ठ ध्यान-शुक्लध्यान की साधना की (भगवान् का) वह ध्यान अत्यन्त शुक्ल वस्तुओं के समान शुक्ल था, दोषरहित शुक्ल था, शंख और चन्द्रमा (आदि शुद्ध श्वेत पदार्थों) के समान एकान्त शुद्ध श्वेत (शुक्ल) था। 368. महर्षि महावीर ने (विशिष्ट क्षायिक) ज्ञान, शील (चारित्र) और दर्शन (के बल) से समस्त (ज्ञानावरणीय आदि) कर्मों का विशोधन (सर्वथा क्षय) करके सर्वोत्तम (अनुत्तर लोकाग्रभाग में स्थित) सादि अनन्त परम सिद्धि (मुक्ति) प्राप्त की। 366. जैसे वृक्षों में (देवकुरुक्षेत्र स्थित) शाल्मली (सेमर) वृक्ष ज्ञात (जगत्-प्रसिद्ध) है, जहाँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003470
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages847
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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