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________________ निम्नोक्त 363 मतान्तरों का उल्लेख किया है। 180 प्रकार के क्रियावादी 84 प्रकार के अक्रियावादी 67 प्रकार के अज्ञानवादी और 32 प्रकार के वैनयिक / जैन परम्परागत अनेक महत्वपूर्ण पारिभाषिक शब्दों की सुस्पष्ट व्याख्या सर्व प्रथम आचार्य भद्रबाह ने अपनी आगमिक नियुक्तियों में की है। इस दृष्टि से नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाह का जैन साहित्य के इतिहास में एक विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण स्थान है। पीछे भाष्यकारों एवं टीकाकारों ने प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में उपयुक्त नियुक्तियों का आधार लेते हुए ही अपनी कृतियों का निर्माण किया है। भाष्य: नियुक्तियों का मुख्य प्रयोजन पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या करना रहा है / पारिभाषिक शब्दों में छिपे हुए अर्थ बाहुल्य को अभिव्यक्त करने का सर्वप्रथम श्रेय भाष्यकारों को है। नियुक्तियों की भांति भाष्य भी पद्य बद्ध प्राकृत में है। कुछ भाष्य नियुक्तियों पर हैं और कुछ केवल मूल सूत्रों पर / निम्नोक्त आगम ग्रन्थों पर भाष्य लिखे गये हैं :१.--आवश्यक, २---दशवकालिक, ३--उत्तराध्ययन, ४-वृहत्कल्प, ५.--पंचकल्प, ६-व्यवहार ७---निशीथ, 8-- जीत कल्प, ह--ओघ-नियुक्ति, १०---पिण्ड नियुक्ति / आवश्यक सूत्र पर तीन भाष्य लिखे गये हैं / इनमें से 'विशेष आवश्यक भाष्य' आवश्यक सूत्र के प्रथम अध्ययन सामायिक पर है। इसमें 3603 गाथाएँ हैं / दशवकालिक भाष्य में 63 माथाएँ हैं। उत्तराध्ययन भाष्य भी बहुत छोटा है। इसमें 45 गाथाएँ हैं। बृहत्कल्प पर दो भाष्य हैं। इसमें से लघुभाय्य पर 6460 गाथाएँ हैं। पंचकल्प-महाभाष्य की गाथा संख्या 2574 है। व्यवहार भाष्य में 4626 गाथाएँ हैं / निशीथ भाष्य में लगभग 6500 गाथाएँ हैं। जीतकल्प भाष्य में 2606 गाथाएँ हैं। ओघनियुक्ति पर दो भाष्य हैं। इनमें से लघुभाष्य पर 322 तथा वृहद् भाष्य में 2517 गाथाएँ हैं। पिण्डनियुक्ति भाष्य में केवल 46 गाथाएँ हैं। इस विशाल प्राकृत भाष्य साहित्य का जैन साहित्य में और विशेषकर आगमिक साहित्य में अति महत्वपूर्ण स्थान है / पद्यबद्ध होने के कारण इसके महत्व में और भी वृद्धि हो जाती है। भाष्यकार: भाष्यकार के रूप में दो आचार्य प्रसिद्ध हैं :--जिनभद्रगणि और संघदास गणि / विशेषावश्यकभाष्य और जीत कल्पभाष्य आचार्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण को कृतियाँ हैं। बृहत्कल्प लघुभाष्य और पंचकल्प महाभाष्य संघदास गणि की रचनाएँ हैं। इन दो भाष्यकारों के अतिरिक्त अन्य किसी आगामिक भाष्यकार के नाम का कोई उल्लेख उप. लब्ध नहीं है। इतना निश्चित है कि इन दो भाष्यकारों के अतिरिक्त कम से कम दो भाष्यकार तो और हुए ही हैं। जिनमें से एक व्यवहार भाष्य आदि के प्रणेता एवं दूसरे बृहत्कल्प-बृहद्भाष्य आदि के रचयिता हैं। विद्वानों के अनुमान के अनुसार वृहत्कल्प-वृहद्भाष्य के प्रणेता वृहत्कल्प चूर्णिकार तथा विशेषकल्प-चूणिकार से भी पीछे हुए हैं। ये हरिभद्र सूरि के कुछ पूर्ववर्ती अथवा समकालीन हैं। व्यवहार भाष्य के प्रणेता विशेषावश्यक भाष्यकार आचार्य जिनभद्र सूरि के पूर्ववर्ती हैं। संघदासगणि भी आचार्य जिनभद्र के पूर्ववर्ती हैं। चूणियाँ : जैन आगमों की प्राकृत अथवा संस्कृतमिश्रित प्राकृत व्याख्याएँ चर्णियाँ कहलाती हैं। इस प्रकार की कुछ चूणियाँ आगमेतर साहित्य पर भी हैं। जैन आचार्यों ने निम्नोक्त आगमों पर चूणियाँ लिखी हैं ।-१--आचारांग, २-सत्रकृतांग, ३–व्याख्या प्रज्ञप्ति (भगवती) ४--जीवाभिगम, ५--निशीथ, ६-महानिशीथ, ७---व्यवहार, ८-दश:श्रत स्कन्ध, 8--वृहत्कल्प १०-पंचकल्प, ११--ओघनियुक्ति, १२--जीतकल्प, 13. उत्तराध्ययन, १४–आवश्यक १५-दशवकालिक' १६-नन्दी, १७--अनुयोगद्वार, १८--जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति / निशीथ और जीतकल्प पर दो-दे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003470
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages847
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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