________________ स्त्रीपरिज्ञा : चतुर्थ अध्ययन प्राथमिक 3 सूत्रकृतांग सूत्र (प्र० श्रु०) के चतुर्थ अध्ययन का नाम 'स्त्रीपरिज्ञा' है। - स्त्री शब्द के निक्षेप की दृष्टि से अनेक अर्थ होते हैं। नाम स्त्री और स्थापना स्त्री प्रसिद्ध है। द्रव्य स्त्री दो प्रकार की हैं-आगमतः और नोआगमत:। जो स्त्री पद के अर्थ को जानता है किन्तु उसके उपयोग से रहित है, वह आगम-द्रव्यस्त्री है। नोआगम-द्रव्यस्त्री के तीन भेद हैंज्ञशरीर द्रव्यस्त्री, भव्य शरीर द्रव्यस्त्री और ज्ञशरीर भव्यशरीर-व्यतिरिक्त-द्रव्यस्त्री। इनमें से ज्ञशरीर-भव्यशरीर-तव्यतिरिक्त द्रव्यस्त्री के तीन प्रकार हैं-(१) एक भविका (जो जीव एक भव के बाद ही स्त्री शरीर को प्राप्त करने वाला हो) (2) बद्धायुष्का (जिसने स्त्री की आयु बांध ली हो) और (3) अभिमुख-नाम-गोत्रा (जिस जीव के स्त्रीनाम-गोत्र अभिमुख हो)। इसी तरह चिन्हस्त्री, वेदस्त्री और अभिलापस्त्री आदि भी द्रव्यस्त्री के प्रकार हैं। जो चिन्हमान से स्त्री है, अथवा स्त्री के स्तन आदि अंगोपांग तथा स्त्रो की तरह की वेशभूषा आदि धारण करने वाला जीव है वह चिन्हस्त्री है। अथवा जिस महान् आत्मा का स्त्रीवेद नष्ट हो गया है, इसलिए जो (छद्मस्थ, केवली या अन्यजीव) केवल स्त्रीवेष धारण करता है, वह भी चिन्हस्त्री है। जिसमें पुरुष को भोगने की अभिलाषारूप स्त्रीवेद का उदय हो, उसे वेदस्त्री कहते हैं / स्त्रीलिंग का अभिलापक (वाचक) शब्द अभिलाप स्त्री है। जैसे-माला, सीता, पद्मिनी आदि। D भावस्त्री दो प्रकार की होती है-आगमतः, नो-आगमतः / जो स्त्री पदार्थ को जानता हुआ उसमें उपयोग रखता है वह आगमतः भावस्त्री है। जो स्त्रीवेदरूप वस्तु में उपयोग रखता है, अथवा स्त्रीवेदोदय प्राप्त कर्मों में उपयोग रखता है-स्त्रीवेदनीय कर्मों का अनुभव करता है, वह नो आगमत: भावस्त्री है। - प्रस्तुत अध्ययन में चिन्हस्त्री, वेदस्त्री आदि द्रव्यस्त्री सम्बन्धी अर्थ ही अभीष्ट है। परिज्ञा का भावार्थ है-तत्सम्बन्धी सभी पहलुओं से ज्ञान प्राप्त करना / परिज्ञा के शास्त्रीय दृष्टि से दो अर्थ फलित होते हैं-ज्ञपरिज्ञा द्वारा वस्तु तत्त्व का यथार्थ परिज्ञान और प्रत्याख्यान परिज्ञा द्वारा उसके प्रति आसक्ति, मोह, रागद्वेषादि का परित्याग करना / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org