________________ द्वितीय उद्देशक गाथा : 133 से 142 आहियं नातेणं महता महेसिया-वृत्तिकार और चूर्णिकार दोनों ने इस पंक्ति का अर्थ किया है-"ज्ञान ज्ञातपुत्रेण, ज्ञातकुलीयेन"ज्ञातत्वेऽपि सति राजसूनुना केवलज्ञानवेत्ता वा, महेय त्ति-महाविषयस्य ज्ञानस्यानन्त्यभूतत्वान्महान् तेन तथाऽनुकूल-प्रतिकूलोपसर्ग-सहिष्णुत्वान्महर्षिणा"-अथवा ज्ञात के द्वारा यानी ज्ञातपत द्वारा, ज्ञातकुलोत्पन्न के द्वारा, राजपूत्र होने से ज्ञातकूलत्व होने पर भी केवलज्ञान सम्पन्न द्वारा महाविषयरूप ज्ञान के अनन्त होने से भगवान् महान् थे, अतः उस महान् के द्वारा तथा अनुकूल-प्रतिकूल उपसर्ग सहिष्णु होने से वे महर्षि थे, अतः महर्षि द्वारा जो (अनुत्तरधर्म) कहा गया है।" अन्नोन्नं सारेति धम्मओ- अन्योन्य-परस्पर, धर्मतः यानी धर्म से सम्बन्धित या धर्म से भ्रष्ट व्यक्ति को धर्म में प्रेरित करते हैं। कठिन शब्दों की व्याख्या-पणामए=दुर्गति या संसार की ओर प्राणियों को झुकाने वाले शब्दादि विषय / उहि जिसके द्वारा आत्मा दुर्गति के समीप पहुंचा दिया है, उसे उपधि कहते हैं, वह माया एवं अष्टविध कर्म परिग्रह है। काहिए जो कथा से आजीविका करता है, वह काथिक-कथाकार / आचासंग चूणिकार के अनुसार ‘णो काहिए' का अर्थ है -शृगारकथा (शृगार सम्बन्धी बात) न कहे / विरुद्ध कथा कहते हैं विकथा को / जिससे कामोत्त जना भड़के, भोजन लालसा बढ़े, जिससे युद्ध, हत्या, दंगा, लड़ाई या वैमनस्य बड़े तथा देश-विदेश के गलत आचार-विचारों के संस्कारों का बीजारोपण हो, ये चारों विकथाएँ हैं, ऐसा संयम-विरुद्ध कथाकार न बने। पासणिए प्राश्निक वह है, जो गृहस्थों के व्यवहारों या व्यापार वगैरह या संतान आदि के विषय में प्रश्नों का फल ज्योतिषी की तरह बताता हो / प्राश्निक का विशेष अर्थ आचारांग चूणि में बताया गया है-स्वप्नफल या किसी स्त्री के विषय में यह पूछने पर कि यह कला-कुशल या सन्तानवती होगी या नहीं ? इत्यादि प्रश्नों का फल बताने वाला साधु / णो पासणिए का अर्थ आचारांगवृत्ति में किया गया है-स्त्रियों के अंगोपांग न देखे / 28 28 कथया चरति कथिकः" प्रश्न निमित्तरूपेण चरतीति प्राश्निकः-सम्प्रसारक देववृष्ट्यर्थकाण्डादिसूचक कथा विस्तारकः / कृता स्वभ्यस्ता क्रिया संयमानुष्ठानरूपा येन स कृतक्रियः / तथा भूतश्च न चापि मामको-ममेदमहमस्य स्वामीत्येवं परिग्रहाग्रही / -सूत्र० वृत्ति (ख) कथयतीति कथकः, पाणिओ-णाम गिहीणं व्यवहारेषु प्रस्तुतेषु पणियगादिषु वा प्राश्निको"""संपसारकोनाम सम्प्रसारकः, तद्यथा-इमं बरिसं किं देवो वासिस्सति ण वेत्ति / "कतकिरिओ-णाम कृतं परैः कर्म पूठो अपुठो वा भणति शोभनमशोमनं वा"मामको णाम ममीकारं करेति। -सूत्रकृतांग चूणि पृ० 25 तुलना-से णो काहिए, जो पासणिए, णो संपसारए, णो मामए, णो कतकिरिए""" -आचारांग श्रु० 1, अ० 5, उ०४, सू० 165 पृ० 173 (ग) से णो काहीए."सिंगारकहा ण कहेयब्वापासणितत्तंपि ण करेति / कयरी अम्ह सा भवति सुमंडिता वा कलाकुसला वा।" संपसारतो णामा उवसमंतिा", एरिसिया मम भाउज्जा, भइणी, भज्जा वा "ममोकारं करेइ / कतकिरियो णाम के ते किरियं करेइ "अहो सोभसि न व सोभसि / -आचा० चूणि (घ) से णो काहिए-स्त्रीसंगपरित्यागी स्त्रीनेपथ्यकथां श्रृगारकथां वा नो कुर्यात् "तथा नो पासणिए""तासामङ्ग प्रत्यंगादिकं न पश्येत्" नो संपसारणाए"ताभि: न सम्प्रसारणं पर्यालोचनमेकान्ते..."कुर्यात् / णो मामए "न तासु ममत्वं कुर्यात् / णो कयकिरिए.""कृता मण्डनादिका क्रिया येन स कृतक्रिय इत्येवंभूतो न भूयात् / -आचारांग शीला वृत्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org