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दशवैकालिक का संस्करण तैयार किया वह मोतीलाल बालचन्द मूथा सतारा के द्वारा प्रकाशित हुआ । सन् १९५४ में सुमति साधु विरचित वृत्ति सहित दशवैकालिक का प्रकाशन देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार सूरत से हुआ । निर्युक्ति, अगस्त्यसिंह चूर्णि का सर्वप्रथम प्रकाशन सन् १९७३ में पुण्यविजय जी म. द्वारा संपादित होकर प्राकृत ग्रन्थ परिषद् वाराणसी द्वारा किया गया।
विक्रम संवत् १९८९ में आचार्य आत्मारामजी कृत हिन्दी टीका सहित दशवैकालिक का संस्करण ज्वालाप्रसाद माणकचन्द जौहरी महेन्द्रगढ़ (पटियाला) ने प्रकाशित किया। उसी का द्वितीय संस्करण विक्रम संवत् २००३ में जैनशास्त्रमाला कार्यालय लाहौर से हुआ। सन् १९५७ और १९६० में आचार्य घासीलाल जी म. विरचित संस्कृतव्याख्या और उसका हिन्दी और गुजराती अनुवाद जैनशास्त्रोद्धार समिति राजकोट से हुआ। वीर संवत् २४४६ में आचार्य अमोलक ऋषि जी ने हिन्दी अनुवाद सहित दशवैकालिक का एक संस्करण प्रकाशित किया । वि.सं. २००० में मुनि अमरचंद्र पंजाबी संपादित दशवैकालिक का संस्करण विलायतीराम अग्रवाल माच्छीवाड़ा द्वारा प्रकाशित हुआ और संवत् २००२ में घेवरचंद जी बांठिया द्वारा सम्पादित संस्करण सेठिया जैन पारमार्थिक संस्था बीकानेर द्वारा और बांठिया द्वारा ही संपादित दशवैकालिक का एक संस्करण संवत् २०२० में साधुमार्गी जैन संस्कृति रक्षक संघ सैलाना से प्रकाशित हुआ । सन् १९३६ में हिन्दी अनुवाद सहित मुनि सौभाग्यचन्द्र सन्तबाल ने संपादित किया, वह संस्करण श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कान्फ्रेंस बम्बई ने प्रकाशित करवाया ।
मूल टिप्पण सहित दशवैकालिक का एक अभिनव संस्करण मुनि नथमल जी द्वारा संपादित वि. संवत् २०२० में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा पोर्चुगीज चर्च स्ट्रीट, कलकत्ता से और उसी का द्वितीय संस्करण सन् १९७४ में जैन विश्व भारती लाडनूं से प्रकाशित हुआ । सन् १९३९ में दशवैकालिक का गुजराती छायानुवाद गोपालदास जीवाभाई पटेल ने तैयार किया, वह जैन साहित्य प्रकाशन समिति अहमदाबाद से प्रकाशित हुआ । इसी तरह दशवैकालिक का अंग्रेजी अनुवाद जो W. Schunring द्वारा किया गया, अहमदाबाद से प्रकाशित हुआ है। सन् १९३७ में पी.एल. वैद्य पूना ने भी दशवैकालिक का आंग्ल अनुवाद कर उसे प्रकाशित किया है।
दशवैकालिक का मूल पाठ सन् १९१२, सन् १९२४ में जीवराज घेलाभाई दोशी अहमदाबाद तथा सन् १९३० में उम्मेदचंद रायचंद अहमदाबाद, सन् १९३८ में हीरालाल हंसराज जामनगर, वि.सं. २०१० में शान्तिलाल वनमाली सेठ ब्यावर, सन् १९७४ में श्री तारक गुरु जैन ग्रन्थालय उदयपुर तथा अन्य अनेक स्थलों से दशवैकालिक के मूल संस्करण छपे हैं। श्री पुण्यविजयजी द्वारा संपादित और श्री महावीर जैन विद्यालय बम्बई से सन् १९७७ में प्रकाशित संस्करण सभी मूल संस्करणों से अधिक महत्त्वपूर्ण है। इस संस्करण में प्राचीनतम प्रतियों के आधार से अनेक शोधप्रधान पाठान्तर दिए गए हैं, जो शोधार्थियों के लिए बहुत ही उपयोगी हैं। पाठ शुद्ध है।
स्थानकवासी समाज एक प्रबुद्ध और क्रान्तिकारी समाज है। उसने समय-समय पर विविध स्थानों से आगमों का प्रकाशन किया तथापि आधुनिक दृष्टि से आगमों के सर्वजनोपयोगी संस्करण का अभाव खटक रहा था । उस अभाव की पूर्ति का संकल्प मेरे श्रद्धेय सद्गुरुवर्य राजस्थानकेसरी अध्यात्मयोगी पूज्य उपाध्याय श्री पुष्करमुनि जी म. के स्नेह-साथी व सहपाठी श्रमण संघ के युवाचार्य श्री मिश्रीमल जी मधुकर मुनि जी ने किया । युवाचार्य श्री ने इस महाकार्य को शीघ्र सम्पन्न करने हेतु सम्पादकमण्डल का गठन किया और साथ ही विविध मनीषियों को सम्पादन, विवेचन करने के लिए उत्प्रेरित किया । परिणामस्वरूप सन् १९८३ तक अनेक आगम शानदार ढंग से प्रकाशित हुए। अत्यन्त द्रुतगति से आगमों के प्रकाशन कार्य को देखकर मनीषीगण आश्चर्यान्वित हो गए। पर किसे
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