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________________ स्थितप्रज्ञस्य का भाषा, समाधिस्थस्य केशव ! स्थितधीः किं प्रभाषेत, किमासीत व्रजेत किम् ॥ -श्रीमद्भगवद्गीता, अध्याय २, श्लोक ५४ हे केशव ! समाधि में स्थित स्थितप्रज्ञ के क्या लक्षण हैं ? और स्थिरबुद्धि पुरुष कैसे बोलता है ? कैसे बैठता है ? कैसे चलता है? ___ दशवैकालिक के चतुर्थ अध्ययन की आठवीं गाथा है— जयं चरे जयं चिढ़े, जयमासे जयं सए । ___जयं भुंजन्तो भासन्तो, पावकम्मं न बंधई ॥ जो यतना से चलता है, यतना से ठहरता है और यतना से सोता है, यतना से भोजन करता है, यतना से भाषण करता है, वह पापकर्म का बंधन नहीं करता। इतिवुत्तक में भी यही स्वर प्रतिध्वनित हुआ है यतं चरे, यतं तिढे यतं अच्छे यतं सये । यतं सम्मिञ्जये भिक्खू यतमेनं पसारए ॥ -इतिवृत्तक १२ दशवैकालिक के चतुर्थ अध्ययन की नौवीं गाथा इस प्रकार है सव्वभूयप्पभूयस्स सम्म भुयाइ पासओ । पिहियासवस्स दंतस्स पावकम्मं न बंधई ॥ जो सब जीवों को आत्मवत् मानता है, जो सब जीवों को सम्यक्-दृष्टि से देखता है, जो आस्रव का निरोध कर चुका है और जो दान्त है, उसे पापकर्म का बन्धन नहीं होता। इस गाथा की तुलना गीता के निम्न श्लोक से की जा सकती है योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः । सर्वभूतात्मभूतात्मा, कुर्वनपि न लिप्यते ॥ ___-गीता अध्याय ५, श्लोक ७ योग से सम्पन्न जितेन्द्रिय और विशुद्ध अन्त:करण वाला एवं सम्पूर्ण प्राणियों को आत्मा के समान अनुभव करने वाला निष्काम कर्मयोगी कर्म करता हुआ भी लिप्त नहीं होता। दशवैकालिक के चतुर्थ अध्ययन की दसवीं गाथा है पढमं नाणं तओ दया एवं चिट्ठइ सव्वसंजए । अन्नाणी किं काही किं वा वा नाहिइ छेय-पावगं ॥ पहले ज्ञान फिर दया इस प्रकार सब मुनि स्थित होते हैं। अज्ञानी क्या करेगा? वह कैसे जानेगा कि क्या श्रेय है और क्या पाप है? इसी प्रकार के भाव गीता के चतुर्थ अध्ययन के अड़तीसवें श्लोक में आए हैं न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते । तत्समयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति ॥ गीता ४/३८ [६१]
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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