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________________ 0 अध्ययन में इसी प्रश्न का उत्तर अंकित है। दशवैकालिकसूत्र के इस अन्तिम अध्ययन में गुणों की दृष्टि से सद्भिक्षु के लक्षण दिये गये हैं। नियुक्तिकार ने संक्षेप में एक गाथा में भिक्षु (आदर्श भिक्षु). का लक्षण बताया है कि पूर्ववर्ती ९ अध्ययनों में प्रतिपादित आचारनिधि का पालन करने के लिए जो भिक्षा करता है, वह सद्भिक्षु है। यही इस अध्ययन का प्रतिपाद्य है। ॥ प्रस्तुत अध्ययन में सद्भिक्षु के लक्षण इस प्रकार बताए हैं जो तीर्थंकर के वचनों में समाहितचित्त हो, स्त्रियों में आसक्ति से तथा त्यक्त विषय-भोगों से विरत हो। जो षट्कायिक जीवों की किसी भी प्रकार से विराधना नहीं करता कराता, जो समस्त प्राणियों को आत्मवत् मानता है, जो पंच महाव्रत एवं पंच संवर का पालन करता है, जो कषायविजयी है, परिग्रहवृत्ति तथा गृहस्थ-प्रपंचों से दूर है, जो खाद्य-पदार्थों का संचय नहीं करता, जो लाया हुआ आहार साधर्मिकों को संविभक्त और आमंत्रित करके खाता है, जो कलहकथा, कोप आदि नहीं करता, जो इन्द्रियविजयी, संयम में ध्रुवयोगी एवं उपशान्त है, जो कठोर एवं भयावह शब्दों को समभावपूर्वक सहता है, जो सुख-दुःख में समभावी, तपश्चरण एवं विविधगुणों में रत, शरीरनिरपेक्ष, सर्वांग-संयत, अनिदान, कायोत्सर्गी, परीषह-विजेता, श्रमणभाव में रत, उपधि में अनासक्त है, जो अज्ञातकुलों में भिक्षा करने वाला, क्रय-विक्रय तथा सन्निधि से विरत, सर्वसंग-रहित, असंयमी जीवन का अनाकांक्षी, वैभव, आडम्बर, सत्कार, पूजा, प्रतिष्ठा आदि में बिल्कुल निःस्पृह है, जो स्थितप्रज्ञ है, आत्मशक्ति के विकास के लिए तत्पर है, जो समिति-गुप्ति का भलीभांति पालक है, अष्टविध मद से दूर एवं धर्मध्यान आदि में रत है, स्वधर्म में स्थिर है, शाश्वत हित में सुस्थित, देहाध्यास-त्यागी और क्षुद्र हास्यचेष्टाओं से विरत । । अतः प्रस्तुत अध्ययन में भिक्षुचर्या तथा भिक्षु के स्वधर्म एवं सद्गुणों से सम्बन्धित समग्र चिन्तन को विशुद्धरूप से अंकित किया गया है। उत्तराध्ययनसूत्र के पन्द्रहवें अध्ययन का नाम भी 'सभिक्खुयं' है और वहां भी इस अध्ययन की तरह प्रत्येक गाथा के अन्त में 'सभिक्खू' शब्द प्रयुक्त किया गया है, उक्त अध्ययन के विषय और पदों से बहुत-कुछ साम्य है। सम्भव है आचार्य शय्यंभव ने इस अध्ययन की रचना में उसे आधार माना हो। * -दशवै. नियुक्ति गाथा ३३० जे भावा दसवेयालियम्मि करणिज्ज वण्णिअंजिणेहिं । तेसिं समाणणंमि जो भिक्खू, इति भवति सभिक्खू ॥ दशवेयालियसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त), पृ.७५ से ७८ तक। देखिये-उत्तराध्ययनसूत्र का १५वाँ सभिक्खुयं अध्ययन ।
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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