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________________ नवम अध्ययन : विनयसमाधि ३२३ निस्सेसं : दो रूप : दो अर्थ (१) निःश्रेयस्-मोक्ष। (२) निःशेष समस्त । ये सब विनय के इहलौकिक फल हैं। अथवा निःशेष श्लाघा का विशेषण है। अविनीत और सुविनीत के दोष-गुण तथा कुफल-सुफल का निरूपण ४७१. जे य चंडे मिए थद्धे दुव्वाई नियडी सढे । वुब्भई से अविणीयप्पा, कटुं सोयगयं जहा ॥३॥ ४७२. विणयं पि जो उवाएण चोइओ कुप्पई नरो । दिव्वं सो सिरिमेजंतिं दंडेण पडिसेहए ॥ ४॥ ४७३. तहे व अविणीयप्पा उववज्झा हया गया । दीसंति दुहमेहंता आभिओगमुवट्ठिया ॥५॥ ४७४. तहेव सुविणीयप्पा उववज्झा हया गया । दीसंति सुहमेहंता इड्डेि पत्ता महायसा ॥६॥ ४७५. तहेव अविणीयप्पा लोगंसि नर-नारिओ । दीसंति दुहमेहंता छाया ते विगलिंदिया ॥ ७॥ ४७६. दंड-सत्थ-परिजुण्णा असम्भवयणेहियय । ___ कलुणा विवन्नछंदा, खुप्पिवासाए परिगया ॥ ८॥ ४७७. तहेव सुविणीयप्पा लोगंसि नर-नारिओ । दीसंति सुहमेहंता इढेि पत्ता महायसा ॥ ९॥ ४७८. तहेव अविणीयप्पा देवा जक्खा य गुज्झगा । दीसंति दुहमेहंता आभिओगमुवट्ठिया ॥ १०॥ ४७९. तहेव सुविणीयप्पा देवा जक्खा य गुज्झगा । दीसंति सुहमेहंता इड्डेि पत्ता महायसा ॥ ११॥ [४७१] जो क्रोधी (चण्ड) है, मृग-पशुसम अज्ञ है, अहंकारी है, दुर्वादी (कठोरभाषी) है, कपटी और शठ है, वह अविनीतात्मा संसारस्रोत (जलप्रवाह) में वैसे ही प्रवाहित होता रहता है, जैसे जल के प्रबल स्रोत में पड़ा हुआ काष्ठ ॥३॥ [४७२] (किसी भी) उपाय से विनय (-धर्म) में प्रेरित किया हुआ जो मनुष्य कुपित हो जाता है, वह आती हुई दिव्यलक्ष्मी को डंडे से रोकता (हटाता) है ॥ ४॥ ३. (क) "णिस्सेसयं च मोक्खमधिगच्छति ।' (ख) श्रुतम् –अंगप्रविष्टादि, श्लाघ्यं-प्रशंसास्पदभूतं, निःशेष-सम्पूर्ण अधिगच्छति। -अगस्त्यचूर्णि -हारि. वृत्ति, पत्र २४७
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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