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________________ रक्खिव्वो, सव्विदिएहिं सुसमाहिएहिं" श्रमण सब इन्द्रियों के विषय से निवृत्त कर आत्मा की रक्षा करे। शास्त्रकार ने आत्मरक्षा पर अधिक बल दिया है, जबकि चरक और सुश्रुत ने देहरक्षा पर अधिक बल दिया है। उनका यह स्पष्ट मन्तव्य रहा कि नगररक्षक नगर का ध्यान रखता है, गाड़ीवान गाड़ी का ध्यान रखता है, वैसे ही विज्ञ मानव शरीर का पूर्ण ध्यान रखे। स्वास्थ्य-रक्षा के लिए चरक ने निम्न नियम आवश्यक बताए हैंसौवीरांजन - आंखों में काला सरमा आंजना। नस्यकर्म- नाक में तेल डालना। दन्त-धावन— दतौन करना। जिह्वानिर्लेखन- जिह्वा के मैल को शलाका से खुरच कर निकालना। अभ्यंग- तेल का मर्दन करना। शरीर-परिमार्जन- तौलिए आदि के द्वारा मैल उतारने के लिए शरीर को रगड़ना, स्नान करना, उबटन लगाना। गन्धमाल्य-निषेवण— चन्दन, केसर, प्रभृति सुगन्धित द्रव्यों का शरीर पर लेप करना, सुगन्धित फूलों की मालाएं धारण करना। रत्नाभरणधारण— रत्नों से जटित आभूषण धारण करना। शौचाधान— पैरों को, मलमार्ग (नाक, कान, गुदा, उपस्थ) आदि को प्रतिदिन पुनः पुनः साफ करना। सम्प्रसाधन– केश आदि को कटवाना तथा बालों में कंघी करना। पादत्राणधारण— जूते पहनना। छत्रधारण- छत्ता धारण करना। दण्डधारण- दण्ड (छड़ी) धारण करना। ये सारे नियम यहां अधिकांशतः श्रमण के अनाचार में आये हैं अथवा अन्य आगम-साहित्य में श्रमणों के लिए निषिद्ध कहे हैं। इसका यही कारण है कि श्रमणों के लिए शरीर-रक्षा की अपेक्षा संयम-रक्षा प्रधान है। संयम-रक्षा के लिए इन्द्रिय-समाधि आवश्यक है। स्नान आदि कामाग्नि-सन्दीपक हैं, अतः भगवान् महावीर ने उन सभी को अनाचार की कोटि में परिगणित किया है। अनाचारों का उल्लेख अहिंसा, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के लिए हुआ है। __ नियुक्तिकार की दृष्टि से दशवैकालिक का तृतीय अध्ययन नौवें पूर्व की तृतीय आचारवस्तु से उद्धृत है।" महाव्रत : विश्लेषण चतुर्थ अध्ययन में षट्जीवनिकाय का निरूपण है। आचारनिरूपण के पश्चात् पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, -चरकसंहिता, सूत्रस्थान अध्ययन ५/१०० ९५. नगरी नगरस्येव, रथस्येव रथी सदा । स्वशरीरस्य मेधावी, कृत्येष्ववहितो भवेत् ॥ ९६. सूत्रकृतांग १/९/१२, १३ से १८, २०, २१, २३, २९ ९७. अवसेसा निजूढा नवमस्स उ तइयवत्थूओ । [३४] -नियुक्ति गाथा १७
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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